जब कान्हा घुट्नन चलने लगे
कभी कीचड़ तो
नित सबको आनंद बरसाते हैं
जिन्हें देख ब्रजवासी हुलसाते हैं
जब कान्हा घुटनों चलते हैं
तब रुनझुन नुपुर बजते हैं
हाथ पैर धूल- धूसरित होते हैं
बार- बार मणिभूमि में
अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं
और किलकारियां मार हँसते हैं
कभी प्रतिबिम्ब पकड़ने को
उल्लसित हो घुटनों के बल
दौड़ लगाते हैं
मगर पकड़ नहीं पाते हैं
अखंड ब्रह्माण्ड नायक
अपनी प्रभुता शिशुता में छुपाते हैं
शब्द इकठ्ठा कर बोलना चाहते हैं
पर स्पष्ट बोल नहीं पाते हैं
कभी मैया आवाज़ लगाती है
लाल तू दौड़ कर यहाँ क्यूँ नहीं आता है
आवाज़ की दिशा पहचान
घुटनों के बल घिसटते हुए चलते हैं
मैया प्रेम से उठती है
ला्ड लडाती है
गोद में बिठाती है
आँचल से धूल को झाड़
मैया गले से लगाती है
कभी कान्हा की भुजाएं पकड़
चलना सिखाती है
कान्हा कदम बढाते हैं
तो कभी लडखडाकर
गिर पड़ते हैं
जिसे देख मैया मुस्काती है
फिर दोबारा चलाती है
ऐसे कान्हा रस बरसाते हैं
मैया का वात्सल्य बढ़ाते हैं
कभी कीचड़ तो
कभी आँगन में विचरने लगे
कभी बछड़ों की पूँछ पकड़ लेते
कभी उनके साथ घिसटते रहते
मधुसूदन के रूप देख- देख
गोपियाँ सुध- बुध बिसरा देतीं
काम सारा बिसरा देतीं
एक दिन एक ब्राह्मण ने
नंदालय में पदार्पण किया
यशोदा ने खूब आवभगत किया
मैया ने भोजन खीर सहित
थाली में परोस दिया
ब्राह्मण ने जैसे आँख बंद कर
प्रभु का आह्वान किया
वैसे ही कान्हा ने खीर को
भोग लगा लिया
ये देख ब्राह्मण बिदक गया
दुबारा थाल परोसा गया
और ऐसा तीन -तीन बार हो गया
जैसे ही प्रभु को भोग लगाता था
वैसे ही कान्हा को खाते पता था
अब तो ब्राह्मण देवता चकरा गए
कृष्ण की लीला से घबरा गए
आँख बंद कर प्रभु से
प्रार्थना करने लगे
ये कैसी लीला है प्रभो ज़रा बतला देना
जैसे ही ब्राह्मण ने करुण पुकार करी
ध्यान में ही प्रभु का दीदार हुआ
और ब्राह्मण आनंदमग्न हुआ
कान्हा को प्रणाम कर चला गया
कभी बछड़ों की पूँछ पकड़ लेते
कभी उनके साथ घिसटते रहते
मधुसूदन के रूप देख- देख
गोपियाँ सुध- बुध बिसरा देतीं
काम सारा बिसरा देतीं
एक दिन एक ब्राह्मण ने
नंदालय में पदार्पण किया
यशोदा ने खूब आवभगत किया
मैया ने भोजन खीर सहित
थाली में परोस दिया
ब्राह्मण ने जैसे आँख बंद कर
प्रभु का आह्वान किया
वैसे ही कान्हा ने खीर को
भोग लगा लिया
ये देख ब्राह्मण बिदक गया
दुबारा थाल परोसा गया
और ऐसा तीन -तीन बार हो गया
जैसे ही प्रभु को भोग लगाता था
वैसे ही कान्हा को खाते पता था
अब तो ब्राह्मण देवता चकरा गए
कृष्ण की लीला से घबरा गए
आँख बंद कर प्रभु से
प्रार्थना करने लगे
ये कैसी लीला है प्रभो ज़रा बतला देना
जैसे ही ब्राह्मण ने करुण पुकार करी
ध्यान में ही प्रभु का दीदार हुआ
और ब्राह्मण आनंदमग्न हुआ
कान्हा को प्रणाम कर चला गया
नित सबको आनंद बरसाते हैं
जिन्हें देख ब्रजवासी हुलसाते हैं
जब कान्हा घुटनों चलते हैं
तब रुनझुन नुपुर बजते हैं
हाथ पैर धूल- धूसरित होते हैं
बार- बार मणिभूमि में
अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं
और किलकारियां मार हँसते हैं
कभी प्रतिबिम्ब पकड़ने को
उल्लसित हो घुटनों के बल
दौड़ लगाते हैं
मगर पकड़ नहीं पाते हैं
अखंड ब्रह्माण्ड नायक
अपनी प्रभुता शिशुता में छुपाते हैं
शब्द इकठ्ठा कर बोलना चाहते हैं
पर स्पष्ट बोल नहीं पाते हैं
कभी मैया आवाज़ लगाती है
लाल तू दौड़ कर यहाँ क्यूँ नहीं आता है
आवाज़ की दिशा पहचान
घुटनों के बल घिसटते हुए चलते हैं
मैया प्रेम से उठती है
ला्ड लडाती है
गोद में बिठाती है
आँचल से धूल को झाड़
मैया गले से लगाती है
कभी कान्हा की भुजाएं पकड़
चलना सिखाती है
कान्हा कदम बढाते हैं
तो कभी लडखडाकर
गिर पड़ते हैं
जिसे देख मैया मुस्काती है
फिर दोबारा चलाती है
ऐसे कान्हा रस बरसाते हैं
मैया का वात्सल्य बढ़ाते हैं
क्रमशः .............
17 टिप्पणियां:
कृष्ण लीला पर आप काफ़ी मेहनत कर रही है, पढ रहा हूं निरंतर। आनंद ही आनंद है, जय कन्हैयालाल की।
आभार
बहुत सुन्दर वर्णन ...
वाह ...आनंददायक प्रसंग
is prayaas ne mann aangan ko pavitra ker diya
आनन्ददायी कृष्णलीला..
वाह मज़ा आगया कृष्ण लीला के इस भाग से रश्मि जी की बात से सहमत हूँ सच मे मन आगन प्रसन्न कर दिया आपने अपनी इस रचना से आभार ...समय मिले तो कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
कान्हा ऐसे ही हैं मन से पुकारो और मनोकामना पूरी ।
सुंदर आलेख और कहानी ।
bhut hi mnbhavn.
वंदना जी गजब की लीला है प्रभु की सुन्दर रचना वात्सल्य रस छलक पड़ा ..आभार आप का ...
भ्रमर ५
bahut sundar katha,,
pichli rachnao ko padh nahi paya tha lekin ab wapas aa gaya hun..
jai hind jai bharat
आदरणीया वंदना जी,
मधुर गुंजन ब्लॉग पर सदस्य के रूप में आपका हार्दिक स्वागत है|
मैं हार्दिक आभारी हूँ कि आपने इस पोस्ट की जानकारी दी|श्रीकृष्ण जी की लीला का वर्णन बड़े मनोहारी ढंग से किया है|
ये कैसी लीला है प्रभो ज़रा बतला देना
जैसे ही ब्राह्मण ने करुण पुकार करी
ध्यान में ही प्रभु का दीदार हुआ
और ब्राह्मण आनंदमग्न हुआ
भक्तिमय पंक्तियाँ...
sunder shabd rachna.bahut bad kaam hai ye .aapbahut sunder likh rahi hain
rachana
sunder shabd sanyojan .aap bada kaam kar rahin hai .aapko badhai
rachana
कृष्ण का बाल-रूप इतना मनोहारी है कि मंदिर तक में बाल कृष्ण की ही पूजा होती है।
कृष्ण लीला की निरंतरता और प्रवाह मुग्ध कर रही है. अनुपम कृति बनेगी.
arae wah yahan to sab krishmay hai... bahut sunder prayas hai ki ek blog hi krishna ka naam...badhai...
वन्दना जी -गोपाल कृष्ण की दिव्य बाल लीला के अति सजीव चित्रण के लिए धन्यवाद ! प्रेम भक्ति
का भाव जाग्रत करती हैं ऐसी रचनायें ! आभार !
एक टिप्पणी भेजें