दधि मथती मैया का
मोहन ने हाथ पकड लिया
मैया की गोद मे बैठ गये
दुग्धपान को मचल गये
मैया प्रेम से दुग्धपान कराने लगी
और मन्द मन्द मुस्कुराने लगी
इतने मे प्रभु ने विचार किया
ये मैया सच मे मुझे बुलाती थी
या यूँ ही आवाज़ लगाती थी
ये सोच प्रभु ने लीला करी
अंगीठी पर रखे दूध मे उबाल आया
जिसे देख यशोदा कान्हा को
गोद से उतार
दूध बचाने चली
जिसे देख कान्हा के
होंठ फ़डकने लगे
मैया को मुझसे ज्यादा
दूध है प्यारा
इसलिये गुस्से मे आ
मथानी और दधि की मटकी
फ़ोड दीन्ही
ग्वाल बालो को बुला
दूसरे कमरे मे जा
माखन लुटाने लगे
ये दूध उबलने और गिरने का भी
इक कारण था
पदमगन्धा गाय का दूध
उबल रहा था
दूध ये सोच रहा था
मेरा जीवन व्यर्थ ही रहा
जो श्याम सुन्दर् ने मुझे ना चखा
ये तो मैया का
दुग्धपान किया करते हैं
फिर भी ना तृप्त होते हैं
ऐसे मे मेरी ओर क्यों निहारेंगे
ऐसे जीवन से मरण अच्छा
श्यामसुन्दर की आँख के आगे
आग मे कूद गया
दयार्द्र मां के नेत्र वहाँ पहुँच गए
और मोहन को अतृप्त छोड
दूध के बलिदान को देख
माँ बचाने पहुँच गयी
मैया का अद्भुत स्नेह देख
दूध शर्म से गढ गया
मेरी रक्षा को मैया ने
मोहन को अतृप्त किया
धिक्कार है मेरे जीवन पर
सोच दूध उफ़नना बंद कर
अपने स्थान पर बैठ गया।
इधर मोहन ने सोचा
माँ ने गोद मे नही बिठाया
तो मै किसी खल की गोद मे
जा बैठूँगा
मानो यही सोच कान्हा
ऊखल पर बैठ गये
और सब ग्वाल बालो को बुला
माखन खिलाने लगे
जब मैया ने आकर देखा
मटकी टूटी पडी थी
दधि मटठे की कीच मची थी
यशोदा समझ गयी थी
मन ही मन हँ स रही थीं
अभी तो छोटा सा है
पर कितना गुस्सा आया है
मैया सब जान गयी थी
पर बिगड ना जाये
इसलिये हाथ मे छडी पकड ली थी
और कान्हा को ढूँढने चली थी
अन्दर जाकर देखा
ऊखल पर खडे हुये हैं
बंदरो और ग्वालो को माखन खिला रहे हैं
जैसे ही पीछे जाकर खडी हुयी मैया
कान्हा ने देख लिया
डर कर ओखली से कूद पडे
और डर कर भागने लगे
भीत भगवान की झांकी
अपूर्व बनी है
मानो ऐश्वर्य को कान्हा ने
ब्रजक्षेत्र से बाहर फ़ेंक दिया है
मातृ सौंदर्य पर न्यौछावर किया है
कोई असुर होता तो
सुदर्शन चक्र का स्मरण करते
पर मैया की प्रेम मयी छडी
का निवारण ना कर पाते हैं
माधुर्य शक्ति ने यहाँ
अपना कब्ज़ा ज़माया है
आखिर जिसे प्यार करने का हक है
तो उसे मारने का हक भी तो बनता है
यहाँ ऐश्वर्य शक्ति माधुर्य शक्ति के आगे नतमस्तक हुई
डर के मारे दौडे जाते हैं
मैया भी थक थक जाती है
पर पीछे पीछे दौडी जाती है
आज ब्रज की गलियों मे
आनन्दघन का डर कर भागना
सबको मोहित कर गया
देवता भी विस्मित हो रहे हैं
क्या सचमुच ये परब्रह्म परमेश्वर हैं जो
पिटने के डर से दौडे जाते हैं
और यशोदा के भाग्य की सराहना करते हैं
कौन सा इस ग्वालिन ने पुण्य किया
जिससे साक्षात ब्रह्म भी डर गया
क्रमशः ..................
12 टिप्पणियां:
बढिया कृष्ण लीला व्याख्यान चल रहा है।
आपके शब्दों में पढना अच्छा लग रहा है।
आभार
Man moh letee hai tumharee Krishn leela!
ब्रज के कान्हा, हे मनमोहन..
उफ़नता दूध भी शर्मिंदा हो गया...प्रभु की लीला,सुन्दर प्रस्तुति|
bahut badiya....
ahobhagya ... krishn roop lage manohari
मनमोहन लीला,सुन्दर प्रस्तुति
अपूर्व लीला वर्णन...
बहुत ही सुन्दर ढंग से कृष्ण -लीला का वर्णन ......आनंद आ गया
दूध को पात्र के रूप में प्रस्तुत करना, खल और ऊखल का प्रयोग बड़ा ही सुंदर बन पड़ा है.लीला में चार चाँद लग गये. वाह !!!
कृष्ण की लीलाएं मन मोह रही हैं ..सुन्दर प्रस्तुति
पुण्य भाग हमारे,जो इतनी सुन्दर
लीला रस के अनुपान का सुवसर मिल रहा है.
आप खुद डूबी हुई लिखती जा रहीं हैं
और हमे में भी डुबोती जा रहीं हैं.
वंदना.. वंदना...
वंदना जी की सादर वंदना.
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