उस दिन कान्हा गौ चराने नहीं गए
बस गोप वृन्दों संग यमुना तट पर खेलते रहे
नंदबाबा सुन चिंता में पड़ गए
कालीदह से फूल लाना कैसे हो संभव
इस उलझन में उलझ गए
वृन्दावन वासी भी चिंतित हो गए
अपने प्राणों का ना किसी को मोह था
बस कंस श्याम बलराम को कैद करेगा
जान सबको कष्ट हुआ
नन्द यशोदा बैठे रोते थे
उन्हें देख कान्हा बोल पड़े
मैया काहे रोती हो
बाबा क्यूँ व्याकुल होते हो
इतना सुन नंदबाबा ने
सारा हाल सुनाया है
कंस का सारा सन्देश बताया है
हर बार तो कुलदेवता की कृपा से
तुम बच जाते थे
अब क्या होगा
सोच- सोच गहराते हैं
ये सुन कान्हा बोले
अब भी वो ही देवता रक्षा करेंगे
जिसने पहले बचाया है
इतना कह सबको ढांढस बंधाया है
श्यामसुंदर यमुना किनारे
ग्वालबालों संग गेंद खेलने लगे
और जानबूझकर श्रीदामा की गेंद
कालीदह में फेंक दी
जिसे देख श्रीदामा मचल गया
मुझे वो ही गेंद लाकर दो
कह अकड़ गया
कन्हैया बोले दूसरी ला दूँगा
पर श्रीदामा पर तो
अपनी गेंद लेने का ही भूत चढ़ा था
श्रीदामा अपनी हठ नहीं छोड़ता था
सबने कितना जोर लगाया
पर श्रीदामा को अडिग पाया
सौ - सौ बातें सुनाता है
होंगे तुम बड़े अपने घर के
खेल में तो सभी बराबर होते हैं
बिना गेंद के हमारी तुम्हारी नहीं निभेगी
तुमने राक्षसों को मारा तो
कौन सा बड़ा काम किया
जब कंस को कालीदह के
फूल पहुँचाओ तो जानूंगा
इतना सुन कान्हा को
गुस्सा चढ़ गया
वो कमर में फेंटा बांध वृक्ष पर चढ़ गए
ये देख गोपवृंद तालियाँ बजने लगे
वो समझे कान्हा श्रीदामा से डर गए
उधर रोता - रोता श्रीदामा बोला
मैं तुम्हारी शिकायत मैया से करता हूँ
सुन ब्रजनाथ ने ललकार कहा
मैं तेरी गेंद अभी लाता हूँ
कह श्यामसुंदर कालीदह में कूद पड़े
जब कान्हा ना ऊपर आये
ये देख ग्वालबाल श्रीदामा को
गालियाँ देने लगे
ग्वालबाल हाय - हाय चिल्लाने लगे
दो बालक बृज की तरफ दौड़ पड़े
उधर अपशकुन भी होने लगे
ये देख मैया बाबा डरने लगे
हमारा प्रानप्यारा कुशल रहे
यही कामना करने लगे
तभी गोपों ने सारा वृतांत जा सुनाया
जिसे सुन मैया को चक्कर आया
व्याकुल होकर गिर पड़ी
जिसने सुना सभी
छाती पीटते यमुना की तरफ दौड़ पड़ा
नन्द यशोदा व्याकुल हो
यमुना में कूदने को उद्यत हुए
पर गोप गोपियों ने उन्हें थाम लिया
मैया बौरायी जाती है
रोते - रोते व्याकुल हो उठती है
बेटा कहाँ विलम्ब लगाते हो
रोटी - माखन खाने क्यों नहीं आते हो
साँवली सूरत मोहिनी मूरत की
तोतली वाणी कैसे अब सुन पाऊंगी
तरह तरह से मैया विलाप करती है
ब्रजवासी कालीदह के किनारे खड़े रोते हैं
तन की सुधि सबने बिसरायी है
बस मोहन से ही प्रीत लगायी है
ब्रजबाला छाती पीटकर रोती है
प्यारे कहाँ छुप गए
सारा ब्रज सूना हुआ है
तुम बिन माखन कौन चुराएगा
हम उलाहना देने
यशोदा निकट कैसे जाएँगी
तुम्हारे विरह में प्राण
गले में अटके हैं
आकर प्राण बचा जाओ
मोहन अब तो आ जाओ
नन्द बाबा विलाप करते हैं
तुझ बिन जगत अँधियारा हुआ
मुझे छोड़ तू कहाँ चला गया
जैसे राक्षसों को मार सुख दिया
वैसे ही अब भी आ जाओ
अपनी मोहिनी मूरत दिखला जाओ वरना
प्राण नहीं रुकते हैं
रोते - रोते यशोदा अचेत हुए जाती है
बलराम जी पानी का छींटा लगाते हैं
जैसे ही होश में आई है
मैया फिर बिलखाई है
बलराम ,बेटा ,कान्हा तुझ बिन
ना अकेला रहता था
तूने कहाँ उसे छोड़ दिया
सुबह से ना कुछ खाया है
प्राण प्यारे को बुला लाओ
इतना सुन बलराम जी
ढाँढस बंधाते हैं
क्यों इतना सोच तुम करती हो
कमल फ़ूल लाने कालीदह में गए हैं
उसका कुछ ना बिगड़ेगा
देखना मैया जैसे पूतना आदि
राक्षसों को मारा है
वैसे ही इस बार भी करेगा
बलराम जी की बातों से
कुछ धैर्य हुआ
और बलराम जी का हाथ
मैया ने पकड़ लिया
क्रमशः ..............
12 टिप्पणियां:
Nishabd kar deti ho!
कालिया दमन विधाना।
Quite informative post.
जय श्री कृष्ण!
बहुत बढ़िया भक्तिमय प्रस्तुति!
yahan aaker krishnmay ho jati hun
कृष्ण कन्हैया की जय...लीलाएँ दिखाकर चकित करते हैं.
सुन्दर कथा..!
कलमदान
अब लगता है आप कृष्ण कन्हैय्या को
नचा कर ही छोडेंगी.
कालिया के फणों पर कृष्ण चरण की ताक धिना धिन
ताक धिना धिन की इन्तजार में.
krishn leela ka sundar varnan .aabhar
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काव्य शिल्प बांधे रखता है।
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में वर्णन किया है!...आभार!
सुंदर चित्रण ...
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