टकटकी लगाये सब देख रहे हैं
कब आवेंगे मनमोहन सोच रहे हैं
इधर कान्हा नटवर रूप धरे
कालीदह में पहुंचे हैं
मोहिनी मूरत की सुन्दरता देख
नागिन मोहित हो कहने लगीं
हे स्वरूपवान कोमल तन
तुम यहाँ क्यों आये हो
अभी तो कालियनाग सोया है
जल्दी यहाँ से तुम जाओ
उसके विष से जल जाओगे
कोमल तन तुम्हारा है
तुम पर तरस मुझे आता है
इतना सुन केशव मूर्ति बोल पड़े
तुम अपने पति को जगा दो
मैं एक करोड़ कमलफूल लेने आया हूँ
उससे क्या बात करोगे
उसकी विषभरी फुंफकार से ही जल मरोगे
तुम्हारा सुन्दर रूप देख
दया मुझे आती है
बालक जान तुझे कहती हूँ
क्यों अपने माता पिता को दुःख देते हो
उस कंस का नाश हो जाये
जिसने तुम्हें यहाँ भेजा है
मुझे तुम्हारी अवस्था पर
बहुत दुःख होता है
नागिन प्रेमभरी ये बोल पड़ी
तब कान्हा ने उपदेश दिया
सोये को मारना ना धर्म होता है
इसलिए जगाने को कहता हूँ
सुन नागिन बोल पड़ी
क्यों छोटे मुँह बड़ी बात करता है
ये कालीनाग गरुड़ तक से लड़ा है
लगता है तेरी मृत्यु
तुझे यहाँ लायी है
जो मेरी बात तुझे
समझ ना आई है
तुझमे सामर्थ्य हो तो
स्वयं जगा ले
इतना सुन वृन्दावन बिहारी ने
नाग की पूँछ पर पाँव धरा
गरुड़ के डर से वैसे ही
चौंक कर उठ खड़ा हुआ
मगर सामने एक बालक को देख
उसे अचरज हुआ
और बोल उठा
मेरे विष की गर्मी तो
अक्षयवट ना सह पाता है
कोसों तक के पशु पक्षी
भस्म हो जाते हैं
फिर ये कैसा बालक है
जो अब तक मेरे सामने खड़ा है
और मुझे नींद से जगाने का
जिसने दुस्साहस किया है
इतना सोच कालियनाग
प्रभु की तरफ दौड़ पड़ा
और अपने सौ फनों से
उनको काटने लगा
उसके विष से यमुना जल
अदहन सम खौलता है
पर वैकुन्ठनाथ पर ना
कोई असर होता था
जब काली ने देखा
मेरे विष का ना
इस पर असर हुआ
जरूर कोई मंत्र जानता है
तभी ना इसको
इतना भीषण विष
व्यापता है
ये सोच काली ने
मोहन को अपने
शरीर से कसकर
लपेट लिया
ये देख नागिन
व्याकुल हुई
इतना सुन्दर बालक
बेमौत मारा जायेगा
इसका बचना कठिन
दिखाई देता है
काली मद मे चूर हो बोला
मै सर्पों का राजा हूँ
यहाँ से बचकर ना
तुम जाने पाओगे
इतना सुन मनमोहन ने
अपना शरीर बढाया
जिसके कारण नाग का
अंग अंग टूट गया
और उसने घबराकर
मनमोहन को छोड दिया
फिर आग बबूला हो
फ़ण ऊँचा कर
फ़ुंफ़कार भरी
नथुनों से उसकी विष की
फ़ुहारें निकल रहीँ थीं
आँखें लाल भट्टी सी तप रही थीँ
मूँह से आग की लपटें निकल रही थीं
श्री कृष्ण उसके साथ खेलते हुये
पैंतरे बदलने लगे
नाग भी उन पर चोट करने को
पैंतरे बदलता रहा
जब पैंतरे बदलते बदलते
नाग का बल क्षीण हुआ
तब कान्हा ने उसके
बडे बडे सिरों को
अपने पैर से दबा दिया
और उछल कर उस पर सवार हुये
कालिये के मस्तक पर
लाल लाल मणियाँ चमकती थीं
जिसकी आभा से कान्हा के
तलुवों की आभा और बढती थी
कान्हा उस पर नृत्य करने लगे
ये देख देवता समझ गये
प्रभु नृत्य करना चाहते हैं
इसलिये ढोल नगाडे मृदंग
पुष्प लेकर आ गये
अद्भुत नृत्य प्रभु का
सबको लुभाता है
शिव समाधि बिसराते हैं
और प्रभु के दिव्य नृत्य को देखने
दौडे चले आते हैं
और मुदित मन नेत्रों को पावन करते हैं
उस दृश्य के आत्मिक आनन्द मे
डूबते उतराते जाते हैं
पर प्रभु के बेजोड नृत्य के आगे
स्वंय के नृत्य को भी तुच्छ पाते हैं
आज प्रभु का अद्भुत श्रृंगार हुआ है
हर मन प्रभु रंग मे रंगा हुआ है
किसी को ने अपना भान रहा है
सिर्फ़ विश्वरूप ही विश्वरूप दिख रहा है
क्रमशः ...........
11 टिप्पणियां:
Krishn leela rachana rup men bahut pasand aai ... badhai
समय रुको .... देखने दो
sundar rachna......
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कालिया दमन विधाना..
waah...
लंबी कविता में एक रेखीय पाठ और पाठको को न बांधे रख पाने का खतरा होता है। आपकी कविता बांधे रखती है। रोचक!
भक्तिय रचना क्रम बढ़िया जा रहा है...
कालिया मर्दन का सुंदर काव्य-चित्र
कालिया मर्दन को शब्दों में साकार किया है । चित्र भी सुंदर ।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...!
अनूठा अनुपम दिव्य वर्णन.
कालिया का काले कान्हा से युद्ध.
कान्हा का कालिया के फनों पर अनोखा नृत्य,
आपकी लेखनी से क्या क्या लिखवा रहा है
कान्हा,यह सब कृपा बरस रही है उसकी.
हम तो कृपा प्रसाद पा रहें हैं,बस.
बहुत बहुत आभार,वंदना जी.
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