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शनिवार, 15 दिसंबर 2012
इकतरफ़ा प्रेम के स्वामी
इकतरफ़ा प्रेम के स्वामी
करते हो अपनी मनमानी
राधे को आधार बनाया
यूँ अपना पिंड छुडाया
सभी गोपियन को भरमाया
कैसा तुमने जाल बिछाया
सही कहा ………इकतरफ़ा प्रेम के स्वामी
क्या नही हो मोहन?
तुमने तो प्रेम करना जाना ही नहीं
बस सब तुम्हें चाहें
और तुम ना किसी को चाहो
उस पर तुर्रा ये कि
सिर्फ़ मुझे चाहो
बाकी सारी दुनिया छोड दो
वाह रे गुरुघंटाल
खूब धमाचौकडी तुमने मचायी है
पहले खुद संसार रचाया
उसमें इंसान बनाया
उसे कर्म का पाठ पढाया
भाईचारे की शिक्षा दी
और जब उसने वो मार्ग अपनाया
तब तुमने अपना रंग दिखलाया
मुझे चाहना है तो सबको छोड दो
वाह ……क्या कहने तुम्हारे
और तब भी तुम मिलो ना मिलो
ये भी तुम्हारी मर्ज़ी
तुम दरस दो ना दो
ये भी तुम्हारी मर्ज़ी
जब सब तुम्हारी ही मर्ज़ी से होना है
तो क्यों इंसान पर दोष लगाते हो
वो तो तुम्हारी तरफ़ आता है
फिर उसे पुआ हाथ मे ले
बार - बार दिखाते हो
जो जब तुम्हारी तरफ़ आता है
तो संसार मे फ़ंसाते हो
उसके प्रलोभन दिखाते हो
और जब तुमसे दूर जाता है
तो अपनी तरफ़ बुलाते हो
अजब ढंग तुमने अपनाये हैं
मोहन ये कैसे खेल रचाये हैं
बस तुम्हें तो खेल खेलना है
खिलौना हमें बनाये हो
तभी तो इकतरफ़ा प्रेम में फ़ंसाये हो
मगर खुद नहीं फ़ँसते हो …………जादूगर !
बस यही तुम्हारा तिलिस्म है
यही तुम्हारा जादू है
सब भ्रमित रहते हैं
तुम्हारे मोहजाल मे फ़ंसते हैं
और तुम्…………नटवर !
नट की तरह करतब दिखाते हो
और प्रेमी को
इकतरफ़ा प्रेम की सूली पर चढाते हो
यहाँ तक कि
राधा को भी भरमाते हो
तुम्हें सर्वस्व बनाया राधे
जो तुम्हें पूजेगा वो ही मुझे पायेगा
आहा! क्या भ्रमजाल फ़ैलाया
सबको एक ही जाल मे उलझाया
और खुद सारी डोरियाँ हाथ में पकडे
सारथि बने प्रेम के घोडों को
ऐंड लगाते कैसे मुस्काते हो
मोहन ! ये चित्ताकर्षक मुस्कान बिखेरे
तुम खेल तो खूब रचाते हो
मगर देखो ……
पकडे भी जाते हो ……पकडे भी जाते हो ……है ना :)
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9 टिप्पणियां:
कृष्ण प्रेम में प्रेम भाव से कृष्ण पर आरोप - प्रेम का स्वाद -अच्छा लगा -बहुत अच्छा
अब कान्हा हैं ही ऐसे. एक तरफ राधा को रुलाये तो दूसरी तरफ रसखान को. सुन्दर भाव.
सब को चारों ओर नचा रहे हैं कान्हा
Sundar...tumharee rachnaon ke liye mere paas alfaaz nahee hote...
कृष्ण के साथ ये संवाद रोचक लगा ।
रोचक सुन्दर भाव. बहुत अच्छा
रोचक सुन्दर भाव. बहुत अच्छा
कान्हा तो ऐसे ही हैं...चित भी मेरी पट भी मेरी को चरितार्थ करते हैं|
गहरे भावो की अभिवयक्ति......
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