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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

"संशयात्मा विनश्यति" सूक्ति को चरितार्थ करने का वक्त आ गया है


लगता है टूटने का , बिखरने का , मिटने का वक्त आ गया है 
किसी छलिया के छल में सिसकने का वक्त आ गया है 
वो जो कहता था तू मेरी और एक कदम बढा  कर तो देख 
मैं साठ  कदम आगे आ जाऊंगा उसी के 
भरमा के ,आँख चुरा के,  कतरा के निकल जाने का वक्त आ गया है 
लगता है 
"संशयात्मा  विनश्यति" सूक्ति को चरितार्थ करने का वक्त आ गया है 

लो देखो कैसा संशयों का बवंडर उठाया है 
जिसमे तुम पर भी आक्षेप लगाया है 
ये मेरा नहीं तुम्हारा है इम्तिहान 
इससे पार लगाने में ही है तुम्हारी जीत 
और इसमें डुबाने में भी है तुम्हारी ही हार 
अब इस क्रिया की प्रतिक्रिया देने का वक्त आ गया है 
नहीं तो .......मान लेना 
"संशयात्मा   विनश्यति" सूक्ति को चरितार्थ करने का वक्त आ गया है 

क्योंकि 
भ्रमों का जाल भी तुम 
संशयों का निवारण भी तुम 
आक्षेपों का रूप भी तुम 
समाधान का स्वरुप भी तुम 
जब तुम ही तुम सब ओर 
कार्य ,कर्ता और कारण 
सब तुम ही तुम 
तो बताना ज़रा .........."मैं " कहाँ ?
फिर भी अपराधी मुझे बनाया है 
और अपने कटघरे में सजाया है 
ये कैसी तुम्हारी माया है 
जो निरपराध पर कहर ढाया है 
तभी तो संशय रूप में अवतार ले 
बीच भंवर में डुबाया है 
ओह सांवरे ! तूने खुद को बचाने 
और हमें मिटाने का क्या खूब सामान जुटाया है 
और हमें त्रिशंकु सा लटकाया है 
बता किधर जाएँ .........अब किधर जाएँ 


या तो खुद को बचाने  का सामान जुटा लेना 
नहीं तो मान लेना 
संशयों, भ्रमो में उलझाना और फिर मिटाना 
यही है तुम्हारा काम 
और जान लो 
ये विनाश ये नाश भी तुम्हारा है 
क्योंकि मेरे "मैं" का तो अस्तित्व ही नहीं है 
सिवाय तुम्हारे होने के 
इसलिए कहती हूँ 
"संशयात्मा  विनश्यति" सूक्ति को चरितार्थ करने का वक्त आ गया है 

और आज उसी कगार पर खडी मैं 
जवाब के इंतज़ार में ………तुम्हारी ओर निहार रही हूँ 
क्योंकि सिर्फ़ यहीं तक तो वश है मेरा 

9 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

वक्त की मांग,बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब सब कुछ ईश्वर के हाथ में है तो सच ही मैं कहाँ ? सुंदर प्रस्तुति

Shalini kaushik ने कहा…

.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार आ गयी मोदी को वोट देने की सुनहरी घड़ी .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी गवेषणा।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत गहन एहसासों की सुन्दर प्रस्तुति
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Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bina lag lapet ke dil ki baaton ko shabdon ka jama pahnaya .....bahut acchhi prastuti....

Saras ने कहा…

बहुत ही सुन्दर...बेहतरीन प्रस्तुति वंदनाजी

Aditya Tikku ने कहा…

behtren-**

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन अपना, जीवन जीना,
मन में हो फिर संशय कैसा?