सांवरे की प्रीत संग मैने बांध ली है डोरी
अब मर्ज़ी तुम्हारी नैया पार लगाओ या मझधार मे डुबा दो मोरी
प्रीत की रीत मैं नही जानूँ
पूजा पाठ की विधि ना जानूँ
और कोई राह ना जानूँ
सांवरे इक तेरे नाम के सिवा
और ना कोई नाम ना जानूँ
अब मर्ज़ी तुम्हारी
हाथ पकडो या छोड दो मुरारी
मै तो जोगन बनी तिहारी
मुझे ना भाये दुनिया सारी
तुम बिन ठौर ना पाये दीवानी
भई बावरी प्रीत बेचारी
दर दर भटके मीरा बेचारी
कहीं ना मिलते कृष्णमुरारी
कैसे आये चैन जिया मे
श्याम बिन अंखियाँ बरस रही हैं
श्याम दरस को तरस रही हैं
श्याम रंग मे डूब गयी हैं
श्याम ही श्याम हो गयी हैं
और कोई रंग नही है
और कोई ढंग नही है
जीवन तुम बिन व्यर्थ गया है
जीने का ना कोई अर्थ रहा है
श्याम सुधि ना बिसरायो
इक बार दरस दिखा जाओ
ह्रदयकमल मे आ जाओ
5 टिप्पणियां:
आपकी कमाल की कृष्णमय शैली की एक और सुंदर पोस्ट , पोर पोर तक कृष्ण प्रेम के स्नेह से सराबोर । बहुत सुंदर ...जारी रहिए
और हां आपकी घनघोर वार्निंग पढ के जा रहे हैं जी , विदाउट परमीसन वाला , अरे हमने खुद कई बार टराई मारा आपकी एक पोस्ट से एक कतरा उठा कर बुलेटिन में टांकने के लिए , मगर मजाल है कि टस से मस नहीं होते हैं जी :) :) :) अब हम लिंक ही पूरा उठाए लिए जाते हैं जब तब ..विद हेडलाइंस जी :) :)
@अजय कुमार झा हुजूरेवाला आप कहें तो आपके नाम कर दें सारा ब्लोग :) आपके लिये थोडे है ये वार्निंग :)
कृष्ण का संसार ही ऐसा निराला है...सब-कुछ, सुध-बुध खो बैठता है...चाहने वाला...सुन्दर रचना...
कान्हा के प्रीत में डूब के लिखी वन्दना ...
जैसे सुध बुद्ध खो गई हो ... भाव पूर्ण लेखन ...
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