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बुधवार, 19 मार्च 2014

ए री अब कैसे धरूँ मैं धीर



कर दिया खुद को खोखला 
अब जो चाहे भर दो पोर पोर में 
बन गयी हूँ तुम्हारी बाँसुरी श्याम 
अब चाहे  जैसे बजा लेना 
बस इक बार अधरों से लगा लेना 
मेरी कोरी चुनरिया 
प्रेम रंग में रंगा देना 
श्याम चरणों से अपने लगा लेना
ऐसी रंगूँ श्याम रंग में 
बस मुझे दर्पण अपना बना लेना 
अधरों पे श्याम सजा लेना 


ए री 
अब जिया ना धरत है धीर 
मेरे ह्रदय में उठत है पीर 
कित खोजूँ मैं ध्याम धन को
अब नैनन से बहत है नीर 


ए री
कोई खबर ले आओ 
कोई श्याम से मिलाओ 
कोई मुझको जिलाओ 
मेरा जिया हुआ है अधीर 


ए री 
अब कैसे धरूँ मैं धीर 

किस बैरन संग छुपे हैं सांवरिया 
लीन्ही ना कोई मोरी खबरिया 
मोरा जिया धरत नाहीं धीर 

ए री 
अब कैसे धरूँ मैं धीर 


जब से भाँवर डाली श्याम संग 
तब से रंग गयी उनके ही रंग 
कह तो सखी अब कैसे बदलूँ चीर 


ए री 
अब कैसे धरूँ मैं धीर 

रस की धार बहती जाये 
तन मन मेरा रंगती जाये 
अब दिन रैन जिया में उठती है पीर 

ए री 
अब कैसे धरूँ मैं धीर 

9 टिप्‍पणियां:

Yogi Saraswat ने कहा…

sundar shabd

सूबेदार ने कहा…

भक्ति रस में सराबोर बहुत सुन्दर.
धन्यवाद

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बाँसुरी बनाने की यह उपमा मन भा गयी।

Vaanbhatt ने कहा…

सुंदर गीत...

Dr ajay yadav ने कहा…

सुंदर ...बहोत सुंदर |
unlimited-potential

आशीष अवस्थी ने कहा…

बहुत बढ़िया व सुंदर शब्दों से अलंकृत कृति , आदरणीय वंदना जी धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे
नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

रश्मि शर्मा ने कहा…

ए री
अब कैसे धरूँ मैं धीर ..बहुत बढ़ि‍या गीत..

Aditi Poonam ने कहा…

बांसुरी की व्यथा को सुंदर शब्द दे दिए हैं आपने
बहुत बढ़िया पोस्ट....