आपसी संबंध और पैसा , रिश्ते और पैसा , दोस्ती और पैसा ……सोच का विषय बन जाते हैं आज के संदर्भ में ।
जब आप किसी अपने को जरूरत में पैसा दे देते हो तो उसके तारणहार बन जाते हो और यदि कहीं गलती से तुमने कुछ समय बाद वो पैसा माँग लिया तो सबसे बडे दुश्मन आखिर कैसे अपने हुए जो थोडी मदद भी नही की गयी तकाज़े पर तकाज़े कर दिए मगर वो ये नहीं सोचेगा कि वक्त पर तो तुम्हारे काम आया , आज उसे जरूरत होगी तभी तो माँगा होगा मगर नहीं कैसे बर्दाश्त हो जाए।उस वक्त बेचारा देने वाला सोच में पड जाता है कि आखिर उसने वक्त पर सहायता करके क्या कोई गुनाह कर दिया और ऐसे में जब यदि कोई दूसरा अपना फिर वो रिश्तेदार हो या मित्र वो माँगे तो उस बेचारे के पास मना करने के सिवा दूसरा चारा नहीं होता आखिर कब तक दानवीर बने , आखिर कब तक सब जानबूझकर खुद को ठगे बेशक पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं मगर फिर भी आज के ज़माने में जब एक बार किसी का विश्वास उठ जाता है तो जल्दी से कहीं जमता नहीं क्योंकि न जाने कितने अपनों की जरूरतों के विरुद्ध जाकर उसने सहायता की होगी या उधार दिया होगा मगर जब वापस माँगने पर खुद ही दोषी सिद्ध कर दिया जा रहा हो तो इसके सिवा उसके पास कोई चारा नहीं बचता और जब वो ये रास्ता अख्तियार करता है तो भी अन्दर ही अन्दर कुछ उसे कचोटता है कि उसने मना क्यों किया मगर जिसे मना कर दिया वो जाने कैसे कैसे विचार उसके प्रति बना लेता है और कई बार तो संबंध ही तोड लेता है ।
बेशक आज पैसा इंसान की सबसे बडी जरूरत है मगर देने वाले के साथ लेने वाले को भी चाहिए कि वक्त पर काम आने वाले की भावनाओं को समझे और उसके माँगने से पहले ही यदि पैसा वापस कर दे तो शायद रिश्तों में , अपनेपन में , दोस्ती में कभी कडवाहट ना आए , बल्कि एक मजबूत रिश्ता बने जिसकी साझीदारी लम्बे समय तक रहे । आज ये समझने की बहुत जरूरत है कि जितना जरूरी पैसा है उतने ही जरूरी रिश्ते भी होते हैं जिन्हें सहेजे रखने के लिए निर्णायक कदम जरूरी होते हैं । जिस दिन इंसान की सोच बदलेगी और वो अपने स्वार्थ से ऊपर उठेगा उस दिन से एक बार फिर रिश्तों और मित्रता पर विश्वास अपनी गहरी जडें जमा लेगा वरना इंसान जीवन के सफ़र में कब अकेला होता जाएगा उसे पता भी नही चलेगा इसलिये वो वक्त आये उससे पहले जरूरी है दोनों में सामंजस्य बिठाना ।
जब आप किसी अपने को जरूरत में पैसा दे देते हो तो उसके तारणहार बन जाते हो और यदि कहीं गलती से तुमने कुछ समय बाद वो पैसा माँग लिया तो सबसे बडे दुश्मन आखिर कैसे अपने हुए जो थोडी मदद भी नही की गयी तकाज़े पर तकाज़े कर दिए मगर वो ये नहीं सोचेगा कि वक्त पर तो तुम्हारे काम आया , आज उसे जरूरत होगी तभी तो माँगा होगा मगर नहीं कैसे बर्दाश्त हो जाए।उस वक्त बेचारा देने वाला सोच में पड जाता है कि आखिर उसने वक्त पर सहायता करके क्या कोई गुनाह कर दिया और ऐसे में जब यदि कोई दूसरा अपना फिर वो रिश्तेदार हो या मित्र वो माँगे तो उस बेचारे के पास मना करने के सिवा दूसरा चारा नहीं होता आखिर कब तक दानवीर बने , आखिर कब तक सब जानबूझकर खुद को ठगे बेशक पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं मगर फिर भी आज के ज़माने में जब एक बार किसी का विश्वास उठ जाता है तो जल्दी से कहीं जमता नहीं क्योंकि न जाने कितने अपनों की जरूरतों के विरुद्ध जाकर उसने सहायता की होगी या उधार दिया होगा मगर जब वापस माँगने पर खुद ही दोषी सिद्ध कर दिया जा रहा हो तो इसके सिवा उसके पास कोई चारा नहीं बचता और जब वो ये रास्ता अख्तियार करता है तो भी अन्दर ही अन्दर कुछ उसे कचोटता है कि उसने मना क्यों किया मगर जिसे मना कर दिया वो जाने कैसे कैसे विचार उसके प्रति बना लेता है और कई बार तो संबंध ही तोड लेता है ।
बेशक आज पैसा इंसान की सबसे बडी जरूरत है मगर देने वाले के साथ लेने वाले को भी चाहिए कि वक्त पर काम आने वाले की भावनाओं को समझे और उसके माँगने से पहले ही यदि पैसा वापस कर दे तो शायद रिश्तों में , अपनेपन में , दोस्ती में कभी कडवाहट ना आए , बल्कि एक मजबूत रिश्ता बने जिसकी साझीदारी लम्बे समय तक रहे । आज ये समझने की बहुत जरूरत है कि जितना जरूरी पैसा है उतने ही जरूरी रिश्ते भी होते हैं जिन्हें सहेजे रखने के लिए निर्णायक कदम जरूरी होते हैं । जिस दिन इंसान की सोच बदलेगी और वो अपने स्वार्थ से ऊपर उठेगा उस दिन से एक बार फिर रिश्तों और मित्रता पर विश्वास अपनी गहरी जडें जमा लेगा वरना इंसान जीवन के सफ़र में कब अकेला होता जाएगा उसे पता भी नही चलेगा इसलिये वो वक्त आये उससे पहले जरूरी है दोनों में सामंजस्य बिठाना ।
4 टिप्पणियां:
ज़रुरत के समय जिसने सहायता की उसके प्रति अपना उत्तरदायित्व को निभाना बहुत जरूरी है...पर आजकल पैसे के सामने सब सम्बन्ध पीछे रह जाते हैं...
आज का कडवा सच ..बेबाक और बेलौस ..हमेशा की तरह एकदम करारा
अपसे सहमत हूँ!
खूबसूरत अभिव्यक्ति...
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