पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

न कोई गाँव न कोई ठाँव

न कोई गाँव न कोई ठाँव 
फिर भी मुसाफ़िर 
चलना है तेरी नियति

अंजान दिशा अंजान मंज़िल
फिर भी मुसाफ़िर
पहुँचना है तेरी नियति 

देह के देग से आत्मा के पुलिन तक ही है बस तेरी प्रकृति

5 टिप्‍पणियां:

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

चरवेति! चरवेति!

कविता रावत ने कहा…

जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम..
बहुत बढ़िया

Rs Diwraya ने कहा…

बहुत सुन्दर
धन्यवाद
आमँत्रित

Unknown ने कहा…

Bahut sunder rachna !

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत सुन्दर