जहाँ न पीढियों की उपेक्षा है
न सदियों का सहवास
न कुंठा के त्रास
न विद्रूपताओं के आकाश
समीप दूर के गणित से परे
जहाँ महकते हों मन के गुलाब
स्थितियों परिस्थितियों से गुजरता प्राणी
खोज को नहीं करता प्रयाण
किसी हिमालय की गुफ़ा में
नहीं पाता दिग्दर्शन
मन:स्थिति के परिवर्तन का
जहाँ हो हर शंका का निवारण
तब तक नही जान पाता ये सत्य
जब एकान्त कचोटे और भीड भी
शायद उससे परे भी है कोई ब्राह्मी स्थिति
शायद उससे परे भी है कोई ब्राह्मी स्थिति
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (16-11-2014) को "रुकिए प्लीज ! खबर आपकी ..." {चर्चा - 1799) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर
जब एकान्त कचोटे और भीड भी
शायद उससे परे भी है कोई ब्राह्मी स्थिति
..बढ़िया ..
behad sunder....
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