शाम होने को आई
चलो महफ़िल सजा लूँ
पलकों की ओट कर पर्दा लगा लूँ
क्यूंकि
बड़ा शर्मीला मेरा यार है
बड़ा रंगीला मेरा प्यार है
अब तो चले आओ
सारा आलम बना दिया
रतजगे के लिए दिल पर साँसों का पहरा बिठा दिया
कि
आ जाओ अब तो आखों का खुमार बन कर
ओ रंगीले छबीले मेरे श्याम बांसुरी की तान बनकर
कि
अँखियाँ तरस रही हैं जलवा जरा दिखा जा
निर्मोही श्याम बस इक बार गले लगा जा
कि
प्रीत बावरिया पुकारे है
रस्ता तेरा निहारे है
ये प्रेम के सूने पंथों पर
मेरी आस को मोहर लगा जा
श्याम बस मुझे अपना बना जा
बस इक बार
मेरे मन वृन्दावन में रास रचा जा
श्याम मेरी प्रीत अटरिया चढ़ा जा
मुझे प्रेम का अंतिम पाठ पढ़ा जा
कि
तुझ बिन अब रहा न जाए श्याम ये बिरहा सहा न जाए
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19 - 03 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1922 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत ही शानदार और सार्थक रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
बहुत ख़ूब.............
http://savanxxx.blogspot.in
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