गाऊँ गुनगुनाऊँ
उन्हें रिझाऊँ
कमली बन जाऊँ
मगर
मन मधुबन उजड़ गया
उनका प्यार मुझसे बिछड़ गया
अब
किस ठौर जाऊँ
किस पानी से सींचूं
जो मन में फिर से
उनके प्रेम की बेल उगाऊँ
मन महोत्सव बने तो
सखी री
मैं भी श्याम गुन गाऊँ
युगों की अविरल प्यास बुझाऊँ
चरण कमल लग जाऊँ
मैं भी श्याम सी हो जाऊँ....
4 टिप्पणियां:
मन महोत्सव बने तो
सखी री
मैं भी श्याम गुन गाऊँ
युगों की अविरल प्यास बुझाऊँ
चरण कमल लग जाऊँ
मैं भी श्याम सी हो जाऊँ....
.. मन महोत्सव बनना ही तो श्याम से जुड़ना है। .
बहुत सुन्दर
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
मन महोत्सव बने तो
सखी री
मैं भी श्याम गुन गाऊँ
युगों की अविरल प्यास बुझाऊँ
चरण कमल लग जाऊँ
मैं भी श्याम सी हो जाऊँ....
.. मन महोत्सव बनना ही तो श्याम से जुड़ना है। .
बहुत सुन्दर
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'युगपुरुष श्रीकृष्ण से सजी ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2016) को "नाम कृष्ण का" (चर्चा अंक-2447) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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