ये बात कहाँ दुनिया जान पाई
निर्धन होते हुए भी
वो तो प्रेम का नाता निभाता रहा
अपनी गरीबी को ही बादशाहत मानता रहा
उधर
सम्पन्न होते हुए भी
अपने अहम के बोझ तले
तुमने ही आने/अपनाने में देर लगाई
तुम्हारे लिए क्या दूर था और क्या पास
मगर ये सच है
नहीं आई थी तुम्हें कभी उसकी याद
वर्ना न करते इतने वर्षों तक इंतज़ार
इकतरफा मित्रता थी ये
जिसका मोल तो सिर्फ वो ही जानता था
तभी न कभी उसने गुहार लगाई
तुम्हारी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी जताई
फिर कैसे कहूँ
जानते हो तुम मित्रता की सच्ची परिभाषा ......कान्हा
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
1 टिप्पणी:
बहुत उम्दा!!
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