दीप्ति से अलग होने के बाद , उसे किये वादे की लाज रखने और उसके त्याग को सम्पूर्णता प्रदान करने के लिए तथा अपना बेटा होने का कर्त्तव्य पूरा करने के लिए आकाश ने अपनी सभी इच्छाओं की बलि चढाते हुए माता- पिता की पसंद की बहुत ही सुन्दर , रईस खानदान की अपनी ही जाति की लड़की रश्मि से शादी कर ली । वक़्त अपनी रफ़्तार से गुजरने लगा ---------आकाश अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश करता कि किसी को भी उससे कोई शिकायत ना हो और अपना बेटा और पति होने के फ़र्ज़ को बखूबी निभा सके। उसने खुद को सबकी खुशियों के प्रति समर्पित कर दिया था अपने हर शौक अपनी हर इच्छा का गला तो उसी दिन घोंट दिया था जिस दिन दीप्ति से अलग हुआ था -----------उसकी आवाज़ जो उसकी सबसे बड़ी पहचान थी ना जाने कहाँ वक़्त की गर्दिशों में खो गयी थी यहाँ तक कि रश्मि को तो उसकी इस खूबी का पता भी ना था क्यूँकि उसने कभी आकाश के मन में झाँकने का प्रयास ही नही किया। इसी तरह २ साल निकल गए मगर रश्मि एक रईस खानदान की इकलौती लड़की थी। उसने जो ऐशो -आराम अपने घर देखे थे उसकी तुलना में आकाश तो कुछ भी ना था। मगर फिर भी किसी तरह २ साल उसने निकाल लिए मगर आखिर कब तक एक लगी बँधी तनख्वाह में वो गुजारा करती , कब तक अपनी इच्छाओं को मारती। और जब वो अपनी सहेलियों की ज़िन्दगी की तुलना खुद से करती तब तो वो तिलमिला उठती । धीरे- धीरे २ साल में उसके सब्र का घड़ा भर चुका था और अब उसने छलकना शुरू कर दिया था । अब रश्मि बात -बात पर आकाश को उलाहना देने लगी थी । उसे किसी ना किसी बहाने जलील करती कि इतने पैसों में क्या होता है, आमदनी बढ़ाने के लिए इंसान और भी हथकंडे अपनाता है मगर आकाश एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता क्यूँकि वो बात बढ़ाना नही चाहता था । जब इसका असर नही दिखा तो रश्मि ने आकाश के माँ -बाप को कोसना शुरू कर दिया ------------उसे लगने लगा कि अगर इन दोनों का खर्च उसके सर से हट जाये तो वो उन पैसों से ज़िन्दगी की खुशियाँ खरीद सकती है। इसलिए वो आकाश पर अपने माँ -बाप से अलग होने का दबाब बनाने लगी । उसे लगा कि जो पैसा उन पर खर्च हो रहा है वो बच जायेगा। रोज- रोज की कलह से तंग आकर आकाश के माँ -बाप भी परेशान रहने लगे और उन्होंने आकाश को मजबूर किया कि वो उनसे अलग हो जाये ताकि उसका जीवन खुशहाल हो सके और वो भी बुढ़ापे में दो रोटी चैन की खा सकें। आकाश को मन मारकर अपने माँ- बाप की खुशहाली के लिए और घर में कुछ सुकून रह सके , अलग होना पड़ा मगर इसका नतीजा तो और भी उल्टा निकला। अब तो रश्मि पर किसी तरह का कोई अंकुश ना था । आकाश तो सारा दिन ऑफिस में होता और रश्मि अपने दोस्तों के साथ कभी पार्टी, कभी पिकनिक, कभी मूवी और कभी किट्टी पार्टी आदि में मशगूल रहने लगी। वो तो ऐसे ही जीवन की आदी थी इसलिए वो अब अपने मन के मुताबिक जीने लगी और उसने अब आकाश पर बिलकुल भी ध्यान देना बंद कर दिया । उसके लिए तो वो बस सिर्फ पैसा कमाने की मशीन था या कहो ऐसा बैंक था जिससे जब चाहे जितना चाहे रुपया निकाल सके । इससे आगे उसे आकाश से कोई मतलब ना होता। मगर आकाश को वो भी मंजूर था क्यूँकि वो चाहता था कि किसी भी तरह घर में शान्ति रहे मगर कुछ ही महीनो में रश्मि की आकांक्षाएं बुलंदियों को छूने लगीं। वो आकाश से दिन पर दिन अपना रहन - सहन का स्तर ऊँचा करने के लिए दबाब डालने लगी। उसे नाजायज तरीकों से पैसा कमाने के लिए उकसाने लगी मगर आकाश को ये तरीका पसंद ना था । वो तो सादा जीवन उच्च विचार के आदर्शों का पालन करने वाला इंसान था और रश्मि उससे बिलकुल उलट थी। आखिर कब तक दोनों की निभती। धीरे- धीरे अब सम्बन्ध और भी बिगड़ने लगे। और फिर एक दिन तो उसके सब्र का सारा बाँध ढह गया जब उसने रश्मि को अपने ही घर में नशे की हालत में धुत होकर उसके एक दोस्त की बाँहों में झूमते हुए देखा , वो पल उसकी ज़िन्दगी का सबसे बुरा पल था। जिस इज्ज़त , शान्ति और खुशहाली के लिए उसने इतने त्याग किये थे वो सब आज धुल -धूसरित हुए उसके आगे पड़े थे। बस उस दिन उन दोनों में इतनी ज्यादा तकरार हुई कि रश्मि घर छोड़कर अपने पिता के घर चली गयी। उस पल तो आकाश ने भी जाने दिया ,मगर जब अगले दिन गुस्सा शांत हुआ तो उसे मनाने उसके घर गया मगर वहाँ उसके पिता और रश्मि ने उसकी इतनी बेईज्ज़ती की कि वो उलटे पैर वापस आ गया। कुछ दिनों बाद आकाश ने फिर उसे मनाने की कोशिश की मगर वो नही मानी। अब रश्मि अपनी ज़िन्दगी से किसी भी प्रकार का कोई समझौता नही करना चाहती थी। अब जब आकाश और उसके माता- पिता भी अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करके हार गए तब आकाश ने एक गंभीर निर्णय लिया। आकाश ने सोचा कि इस निर्णय से घबराकर शायद रश्मि वापस आ जाये इसलिए आकाश ने तलाक के कागजात रश्मि के पास भेजे। मगर परिणाम आकाश की सोच के विपरीत हुआ। रश्मि ने वापस आने की बजाय कोर्ट जाना पसंद किया। अब दोनों कोर्ट की तारीखों में घिसटने लगे और इसी जद्दोजहद में आकाश की ज़िन्दगी के पांच साल निकल गए। आकाश को हर रिश्ता सिर्फ स्वार्थपरक लगने लगा। उसे लगता कोई भी उसका अपना नही है सब उसे प्रयोग करना चाहते हैं। माँ बाप ने अपने प्यार , इज्जत और जाति की दुहाई दी और उसके प्रेम का बलिदान ले लिया मगर उसे क्या हासिल हुआ -------वो जिसे उसने जीवनसाथी बनाया वो कभी उसकी ना हुई , उसके लिए तो आकाश का कोई अस्तित्व ही ना था। इन सब बातों ने आकाश को अंधेरों के गर्त में धकेल दिया और जिन राहों को वो बुरा समझता था आज उन्ही राहों पर कदम उसे ले गए थे। अब वो अपना गम शराब की बोतलों में डुबाने की कोशिश करता क्यूँकि कुछ देर के लिए ही सही मगर वो इस मतलबी दुनिया से दूर हो जाता था और आज भी तलाक का इंतज़ार करते -करते जब उसे अगली तारीख मिली तो एक बार फिर उसने शराब का सहारा लिया और उसी हालत में दीप्ति को मिला।
इतन कहकर आकाश चुप हो गया। दीप्ति तो इतना सब सुनकर वैसे ही सुन्न हो गयी थी। उसे तो खुद समझ नही आ रहा था कि ये क्या हो गया है। कैसे आकाश को सांत्वना दे । मगर किसी तरह खुद को संभालकर उसने आकाश को समझाया और थोडा - बहुत खिलाया पिलाया। फिर दीप्ति ने पूछा कि तुम्हें तलाक अब तक क्यूँ नही मिला तो आकाश ने बताया कि रश्मि उससे बदला ले रही है इतने दिन की तड़प का , चाहती तो वो भी है मगर मुझे तड़पते देख उसे सुकून मिल रहा है इसलिए वो हर बार तारीख लेकर निकल जाती है जबकि आकाश को हर बार इस शहर में आना पड़ता है क्यूँकि रश्मि का मायका यहीं है और हर बार सिर्फ तारीख लेकर ही चला जाता है। बस इन्ही हालात ने उसे परेशान कर दिया है । उसकी ज़िन्दगी कोर्ट की सीढियां चढ़ने- उतरने में ही बर्बाद हो रही है और कोई हल नही मिल रहा क्यूँकि रश्मि को औरत होने का भी फायदा मिल रहा है कोर्ट की भी सारी सहानुभूति उसके साथ है।
अब दीप्ति ने आकाश को समझाया और कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आकाश के साथ उसके शहर गयी। आज उसे ये शहर अपना होते हुए भी अजीब लग रहा था मगर किसी तरह दिल पर पत्थर रखकर वो आकाश के साथ उसके माता -पिता के पास गयी उनसे मिली । आज वो भी अपने किये पर शर्मिंदा थे। अब उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हो गया था मगर अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत । अब जब उन्होंने अपने बेटे की ज़िन्दगी बर्बाद होते देखी तब उन्हें समझ आया कि जाति -बिरादरी कोई काम नही आता और जहाँ प्रेम हो वहां इन सबकी कोई जरूरत नही होती । सिर्फ अपने उसूलों की वजह से आज उन्होंने तीन जिंदगियां बर्बाद कर दी थीं। आज वो दीप्ति के आगे खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे। आज वो तहेदिल से चाहते थे कि आकाश और दीप्ति एक हो जायें मगर आज उनके बीच था आज का कानून। साल पर साल निकल रहे थे मगर आकाश और रश्मि का अभी तलाक नही हुआ था। आकाश और दीप्ति का प्रेम एक बार जाति -पांति के चक्कर में बलिदान हुआ था और अब कानून के चक्रव्यूह में फँसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा था। कब तक हमारा समाज इन बेड़ियों में जकड़ा रहेगा और मासूमों की ज़िंदगियाँ बर्बाद करता रहेगा। कब तक कानून की जटिल प्रक्रियाएं मानव मन को खोखला करती रहेगी और वो बेबस , असहाय -सा निरीह पशु की भाँति कानून के शिकंजे में फँसा बर्बाद होता रहेगा। ऐसा आखिर कब तक????????????
12 टिप्पणियां:
एक सही मायने में बेमेल रिश्ता क्या होता है इसको परिभाषित करती बहुत सुन्दर कहानी थी वंदना जी , हालांकि मेरे जैसे इंसान को कहानी के बीच में "क्रमश: " शब्द बड़ा अप्रिय लगता है फिर भी कहानी के शुरू से अंत तक रोचकता बनी रही !
आपने समाज के इस खोखले कानून के साथ ही साथ आज के कानून पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है .. बहुत सटीक कहानी .. बहुत सुदर ढेग से लिखा .. बधाई आपको !!
बहुत ही अच्छी कहानी लिखी है,बिलकुल सच्चाई के धरातल पर.....आज के हालातों को बयाँ करती हुई....कभी कभी तलाक के ये सख्त नियम पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर डालते हैं....ऐसे बेमेल विवाह के दुःख के बाद भी दीप्ती से मुलाकात होने पर आकाश, बची हुई ज़िन्दगी सुक्कों से काट सकता था...पर हमारी न्याय व्यवस्था ने उसकी ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ रौंद डाली..
एक सार्थक कहानी...
बहुत अच्छी कहानी....समाज कि और कानून व्यवस्था कि कमियों को उजागर करती हुई ...
दोनो अंक आज ही पढ़े ... बहुत ही सार्थक और अच्छे विषय को उठाया है आपने इस कहानी के ज़रिए ..... हमारा समाज जो पता नही क्यों आज तक पुरातन रूदियों से जुड़ा हुवा है ... जो बातें अच्छी है उनको तो हम भुला देते हैं पर जो कुछ सड़ी गली मान्यताएँ हैं उनको आज भी ढो रहे हैं .. अच्छा संदेश देती है कहानी ...
bahut he achhi kahaani ka ant....
aabhaar!
सच में वंदना जी जितनी कहानी पढने पर उत्सुकता बढती जा रही थी आज कहानी के अंत तक आते आते और बढ़ गयी ,,, जिस तरह कहानी एक प्रवाह के साथ बढ़ रही थी उसका अंत भी उतना ही प्रवाह मय हो गया है बहुत ही बेहतरीन कहानी है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
समाज की विडंवनाओं का सजीव चित्रण बहुत प्रवाहमय कहानी है धन्यवाद्
कहानी सशक्त भाषा में लिखी होने के साथ-साथ अन्त:संघर्ष का सफलतापूर्वक निर्वाह करती नज्ञर आती हैं।
बेमेल रिश्तों की परिणति और कानून की शिथिलता को लेकर आपने सुन्दर कहानी लिखी है!
बधाई!
saamajik bidamnoyon ka sundar chitra prastut kiya hai aapne kahane ke madhayam se,bahut hi achhi laga.
Bahut badhai...
आज पूरी कहानी फिर से पढी। कहानी बहुत अच्छा थी बस कथ्य की कमी कुछ खली। समाज मे शायद न तो समाज ही करता है और कानून तो है ही अन्धा जिस से कई ज़िन्दगियाँ बरबाद हो जाती हैं । अच्छा विषय चुना है, बधाई ।
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