प्रीत चदरिया ऐसी ओढ़ी
हो गयी मैं बेगानी
अपना पता खोजती डोलूं
बन के मैं दीवानी
बांसुरी की धुन पर
वन -वन खोजूं
बन के मैं मतवाली
श्याम प्रीत की
ओढनी ओढ़ के
हो गयीं मैं अनजानी
श्याम के रंग में
ऐसी रंग गयीं
हो गयी मैं भी कारी
श्याम रंग की चुनरिया
पर मैं जाऊं वारी -वारी
प्रीत की सब रीतें भुला दूँ
तन -मन की सुधि बिसरा दूँ
प्रेम धुन पर ऐसे
नाचूँ छम- छम
होकर मैं मतवाली
14 टिप्पणियां:
"प्रीत की सब रीतें भुला दूँ
तन -मन की सुधि बिसरा दूँ"
बहुत बढ़िया जी....
कुंवर जी,
BAHUT ACCHHI RACHNA. AAPKI RACHNA KAL KE CHARCHAMUNCH KE LIYE CHUN LI GAYI HAI.
ABHHAR.
कान्हा प्रेमरस की एक और उम्दा अभिव्यक्ति !
आपकी संवेदनाएं काबिले-तारीफ है। आपको प्रेम की इस सुंदर रचना के लिए बधाई।
bahut sundar.....bhakti aur shringaar ka adbhut milan...
वाह...कान्हा रंग में रंगी...सुन्दर रचना
तन -मन की सुधि बिसरा दूँ
प्रेम धुन पर ऐसे
नाचूँ छम- छम
होकर मैं मतवाली
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प्रीत का रंग बहुत बढ़िया चढ़ा है!
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पूरी रचना कृष्ण के समर्पण मे रंगी हुई है!
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इस तरह की रचनाएँ
आप बहुत ही कुशलता से रचतीं है!
बहुत-बहुत बधाई!
सुन्दर गीत!
बहुत सुंदर शब्दों के साथ...सुंदर प्रेमास कविता....
सुंदर रचना
बहुत सुंदर भाव लिए हुए अभिव्यक्ति
आभार
आपकी पोस्ट की चर्चा यहां भी है
बहुत सुन्दर गीत है तुम्हारी सभी रचनाओं मे प्रेम रंग खूब बरसता है आभार
vandana ji aapki prem ras me doobi rachna aapke krishna prem ko bakhubi darshati hai.khoobsurat shabd sanjojan ke liye badhai....
प्रेम धुन पर ऐसे
नाचूँ छम- छम
होकर मैं मतवाली
प्रीत के रंग में पूरी तरह डूबी रचना...बहुत ही सुन्दर
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