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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

मधु हो तुम

मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त 


प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड 
सदियों से अपूर्ण

अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु


पूर्ण  हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह 
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल 
ओह! पूर्ण , कहो 
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण  हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी 
अब पूर्ण तृप्त !

35 टिप्‍पणियां:

PAWAN VIJAY ने कहा…

सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
बधाई

--

Aruna Kapoor ने कहा…

..बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम!...

दीपक बाबा ने कहा…

अपूर्णता से पूर्णता की ओर

बेहतरीन कविता.....

Learn By Watch ने कहा…

बेहतरीन लिखा है

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

prem se bhari rachna .... jismen divyta ka ahsaas hota hai....

अजय ने कहा…

bahut hi umda likha hai Vandana Ji...

अजय ने कहा…

bahut hi umda likha hai Vandana Ji...

shalini kaushik ने कहा…

karo mujhe bhi ab poorn tript..bahut sundar bhavabhivyakti..

नुक्‍कड़ ने कहा…

सब जग
अधूरा मन
इसी तलाश में

kshama ने कहा…

Wah,Vandana wah!

संजय भास्‍कर ने कहा…

कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

रस भाव समेटे बढ़िया कृति

मेरे भाव ने कहा…

मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त ....

मधुमय रचना .

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Anamikaghatak ने कहा…

ati sundar rachana

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पूर्णता, अपूर्णता का संबंध तो बना रहेगा, प्रवाह भी।

Sushil Bakliwal ने कहा…

सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
बधाई...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत कामना ...भक्ति से सराबोर

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!

बेनामी ने कहा…

पूर्णमदः पूर्णमिदम्!
सुन्दर कामना और भावना को लिए हुए
सुन्दर रचना!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद

वाणी गीत ने कहा…

अनंत अपूर्ण क्षुधा को प्रेम से पूर्ण करने की चाहत ...
सुन्दर कविता !

udaya veer singh ने कहा…

priya vandana ji,

pranam ,

sundar chitran ,sargabhit,man ko chhuti ,bhavmayi prasuti. abhar.

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

प्रेम रस से लबरेज़ अच्छी अभिwयक्ति ,जो ईश्वरीय प्रेम की भी याद दिलाती है, गर सू्फ़ियाना अन्दाज़ से निहारें। ,मुबारक।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

इस बार आपकी कविता का रूमानी पक्ष उभर कर सामने आया है.
यहाँ "तुम" का संबोधन ईश्वर के लिए है क्या ?

vandana gupta ने कहा…

@कुंवर जी
ये पूरी रचना ही ईश्वर को समर्पित है ...........पूरी रचना में उसे ही संबोधित किया है .

ZEAL ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति !

Kailash Sharma ने कहा…

ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !

गहन अहसास...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

हरीश जोशी ने कहा…

नमस्कार........ आपका कि कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......

http://harish-joshi.blogspot.com/

आभार.

shyam gupta ने कहा…

अति सुन्दर--वेदों में वर्णित ..मधुला विद्या...व ओम पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामे्वावशिय्ते....का अद्भुत संगम....

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुब्दर रचना। बधाई।

Rakesh Kumar ने कहा…

'He poorn tript,karo muze bhi ab poorn tript' koi bhakt hi bhagwan se kehta hai.Ye to nadia ki tadaf hai samunder se milne ki,aatma ki pukar hai parmatma se milan ki.Aisi
bhav aur bhakti se poorn rachana ko
sat sat pranam.

විකී ने कहा…

i like it.

vijay kumar sappatti ने कहा…

amazing poem .... waah waah waah ..

OM KASHYAP ने कहा…

सुन्दर कविता !
ॐ कश्यप में ब्लॉग में नया हूँ
कर्प्या आप मेरा मार्ग दर्शन करे
धन्यवाद
http://unluckyblackstar.blogspot.com