मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
35 टिप्पणियां:
सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
बधाई
--
..बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम!...
अपूर्णता से पूर्णता की ओर
बेहतरीन कविता.....
बेहतरीन लिखा है
prem se bhari rachna .... jismen divyta ka ahsaas hota hai....
bahut hi umda likha hai Vandana Ji...
bahut hi umda likha hai Vandana Ji...
karo mujhe bhi ab poorn tript..bahut sundar bhavabhivyakti..
सब जग
अधूरा मन
इसी तलाश में
Wah,Vandana wah!
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
रस भाव समेटे बढ़िया कृति
मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त ....
मधुमय रचना .
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
ati sundar rachana
पूर्णता, अपूर्णता का संबंध तो बना रहेगा, प्रवाह भी।
सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
बधाई...
खूबसूरत कामना ...भक्ति से सराबोर
बहुत उम्दा!
पूर्णमदः पूर्णमिदम्!
सुन्दर कामना और भावना को लिए हुए
सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
अनंत अपूर्ण क्षुधा को प्रेम से पूर्ण करने की चाहत ...
सुन्दर कविता !
priya vandana ji,
pranam ,
sundar chitran ,sargabhit,man ko chhuti ,bhavmayi prasuti. abhar.
प्रेम रस से लबरेज़ अच्छी अभिwयक्ति ,जो ईश्वरीय प्रेम की भी याद दिलाती है, गर सू्फ़ियाना अन्दाज़ से निहारें। ,मुबारक।
इस बार आपकी कविता का रूमानी पक्ष उभर कर सामने आया है.
यहाँ "तुम" का संबोधन ईश्वर के लिए है क्या ?
@कुंवर जी
ये पूरी रचना ही ईश्वर को समर्पित है ...........पूरी रचना में उसे ही संबोधित किया है .
बेहतरीन प्रस्तुति !
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
गहन अहसास...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
नमस्कार........ आपका कि कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
अति सुन्दर--वेदों में वर्णित ..मधुला विद्या...व ओम पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामे्वावशिय्ते....का अद्भुत संगम....
बहुत सुब्दर रचना। बधाई।
'He poorn tript,karo muze bhi ab poorn tript' koi bhakt hi bhagwan se kehta hai.Ye to nadia ki tadaf hai samunder se milne ki,aatma ki pukar hai parmatma se milan ki.Aisi
bhav aur bhakti se poorn rachana ko
sat sat pranam.
i like it.
amazing poem .... waah waah waah ..
सुन्दर कविता !
ॐ कश्यप में ब्लॉग में नया हूँ
कर्प्या आप मेरा मार्ग दर्शन करे
धन्यवाद
http://unluckyblackstar.blogspot.com
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