जैसा घट मेरा रीता वैसा ही तुम्हारा पाया
कभी कर प्रलाप कभी कर आत्मालाप
सुख दुख की सीमा पर ही आत्मसुख मैने पाया
तुम्हारी शरण आकर ही अविच्छिन्न सुख मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
हे जगदाधार , घट घटवासी ,अविनाशी
ये जीवन था निराधार , आधार मैने पाया
जो छोड सारे द्वंदों को तेरी शरण मैं आया
कर नमन तुझको , जीवन सार मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
अपूर्ण था अपूर्ण ही रहता जो ना तुमको ध्याता
तुमने अपना वरद हस्त रख सम्पूर्ण मुझे बनाया
जो कभी कहीं भरमाया तुमने ही रास्ता दिखलाया
अपनी शरण लेकर तुमने मुझे निर्भय बनाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
कभी कर प्रलाप कभी कर आत्मालाप
सुख दुख की सीमा पर ही आत्मसुख मैने पाया
तुम्हारी शरण आकर ही अविच्छिन्न सुख मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
हे जगदाधार , घट घटवासी ,अविनाशी
ये जीवन था निराधार , आधार मैने पाया
जो छोड सारे द्वंदों को तेरी शरण मैं आया
कर नमन तुझको , जीवन सार मैने पाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
अपूर्ण था अपूर्ण ही रहता जो ना तुमको ध्याता
तुमने अपना वरद हस्त रख सम्पूर्ण मुझे बनाया
जो कभी कहीं भरमाया तुमने ही रास्ता दिखलाया
अपनी शरण लेकर तुमने मुझे निर्भय बनाया
फिर कहो कैसे कहूँ मैं रीता ही वापस आया
14 टिप्पणियां:
bahut sundar prastuti Vandana ji ....
bahut sundar .
भगवान् की शरण में पहुँच कर भला कौन रीता रह सकता है .... सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
बहुत सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,सादर आभार.
वंदना जी ! मेरे मन में कुछ ऐसे ही बादल उमड़ घुमड़ रहे थे परन्तु निकलने का रास्ता नहीं मिलरहा था ,आपने मनोहारी शब्दों में उसे सजा दिया. दिल को तसल्ली मिली, इस सोच में मैं अकेला नहीं.- बस इतना -मैं "रीता" नहीं
ati sundar....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
Bahot hu Badhiya VANDNA JI
So Good
so Good VANDNA JIII
Bahot hu Badhiya VANDNA JI
So Good
बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
दिल से निकली रचना प्रस्तुत की है आपने। आभार। :)
नये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
दिल से निकली रचना प्रस्तुत की है आपने। आभार। :)
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