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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

श्याममय दिखता सब संसार



जब से वैराग्य की मांग निकाली है
भक्ति का सिंदूर डाला है 
ज्ञान का सागर बहने लगा
ह्रदय में कम्पन होने लगा 
प्रेम का अंजन 
अश्रुओं मे बहने लगा
मन मयूर नृत्य करने लगा
सांवरा मन मे बसने लगा 
नित्य रास करने लगा 
अब तो मधुर मिलन होने लगा 
प्रेमरस बहने लगा 
द्वि का परदा हटने लगा
 एकाकार होने लगा 
ब्रह्मानंद मे मन डूबने लगा
 "मै" का ना कोई भान रहा
 "तू" मे ही सब समाने लगा
 आह! कृष्ण ये मुझे क्या होने लगा
 जहाँ ना मै रहा ना तू रहा
 बस अमृत ही अमृत बरसने लगा
 आनन्द सागर हिलोरें लेने लगा 
पूर्ण से पूर्ण मिलने लगा 
ओह ! संपूर्ण जगत स्व- स्वरुप दिखने लगा 
आनंद का ना पारावार रहा 
आहा ! श्याममय आनंदमय 
रसो वयि सः निज स्वरुप होने लगा

4 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भक्तिमय खूबसूरत रचना

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

श्याममय, प्रेममय, भक्तिमय

Alpana Verma ने कहा…

श्याममय तन-मन हुआ.
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

Arshia Ali ने कहा…

सुंदर, शाश्‍वत।
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