प्रेम मोहताज़ नहीं होता
किसी अवलंबन का
प्रेम का बीज
स्वतः अंकुरित होता है
नहीं चाहिए प्रेम को
कोई आशा ,
कोई अपनापन
कोई चाहत
प्रेम स्फुरण
आत्मिक होता है
क्योंकि प्रेम
प्रतिकार नहीं चाहता
प्रेम के बदले
प्रेम नहीं चाहता
फिर क्या करेगा
किसी ऊष्मा का
किसी नमी का
किसी ऊर्जा का
प्रेम स्व अंकुरण है
बहती रसधार है
फिर कैसे उसे
कोई पोषित करे
प्रेम तो स्वयं से
स्वयं तक पहुँचने का
जरिया है
फिर कैसे खुद को खुद
से कोई जुदा करे
कैसे कह दें
प्रेम स्खलित हो जायेगा
प्रेम कुछ पल के लिए
सुप्त बेशक हो जाये
अपने में ही बेशक
समा जाये
मगर प्रेम कभी
नहीं होता स्खलित
प्रेम तो दिव्यता का भान है
9 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर ..... प्रेम की व्याख्या करती हुई गहन रचना
sarthak aur gahan ....bahut sundar prem kii vyakhya ...shabdshah satya .
सुन्दर अभिव्यक्ति !
सुन्दर सृजन, नित बढ़ता है प्रेम, अमृत सा।
बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग, आपको बधाई
सच में प्रेम ऐसा ही होता है...प्रेम का बहुत गहन और प्रभावी चित्रण...
ढाई आखर प्यार का तो सबके पास होता है। यह वो स्रोत है जो नैसर्गिकरूप से फूटता है!
"प्रेम कभी नहीं होता स्खलित"
प्रेम बंधुआ भी नहीं होता
प्रेम पार्कों बाज़ारों में भी नहीं होता
सिर्फ एक अनाम रिश्ते ने इसे स्खलित कर दिया है,
सिर्फ देना देना - प्रेम
सिर्फ लेना लेना- स्वार्थ
देना लेना - ब्यवहार
आपके उम्दा कलम को सलाम.....
नि;स्वार्थ प्रेम के व्यापक स्वरूप का मनोहारी चित्र!आभार
भोला-कृष्णा
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