छहों ऋतुएं मोहे ना भायी सखी री
जब तक ना हो पी से मिलन सखी री
विरही मौसम ने डाला है डेरा
कृष्ण बिना सब जग है सूना
जब हो प्रीतम का दर्शन
तब जानूं आया है सावन
ये कैसा छाया है अँधेरा
सजन बिना ना आये सवेरा
पी से मिलन को तरस रही हैं
अँखियाँ बिन सावन बरस रही हैं
किस विधि मिलना होए सांवरिया से
प्रीत की भाँवर डाली सांवरिया से
अब ना भाये कोई और जिया को
विरहाग्नि दग्ध ह्रदय में
कैसे आये अब चैन सखी री
सांवरिया बिन मैं बनी अधूरी
दरस लालसा में जी रही हूँ
श्याम दरस को तरस रही हूँ
मोहे ना भाये कोई मौसम सखी री
श्याम बिन जीवन पतझड़ सखी री
ढूँढ लाओ कहीं से सांवरिया को
हाल ज़रा बतला दो पिया को
विरह वेदना सही नहीं जाती
आस की माँग भी उजड़ गयी है
बस श्याम नाम की रटना लगी है
राधा को अब कहाँ से लाऊं
कौन सा अब मैं जोग धराऊँ
जो श्यामा के मन को भाऊँ
ए री सखी ..........उनसे कहना
उन बिन मुझे ना भाये कोई गहना
हर मौसम बना है फीका
श्याम रंग मुझ पर भी डारें
अपनी प्रीत से मुझे भी निखारें
मैं भी उनकी बन जाऊँ
श्याम रंग में मैं रंग जाऊँ
जो उनके मन को मैं भाऊँ
तब तक ना भाये कोई मौसम सखी री
कोई तो दो उन्हें संदेस सखी री.............
6 टिप्पणियां:
प्रेम ,विरह से ग्रसित ह्रदय की विलाप -बहुत अच्छा
latest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
Ateev sundar!
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2013) को में” "शम्मा सारी रात जली" (चर्चा मंच-अंकः1322) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ...
बधाई आपको !
कृष्ण संग मन रमा .... उसके बिना भला कौन सी ऋतु .... बहुत सुंदर
सावन की सुन्दर, कोमल, नम पंक्तियाँ।
एक टिप्पणी भेजें