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चलो ये छोडो
माँ यशोदा का
क्या दोष हुआ
तुमसे उसने
निस्वार्थ प्रेम किया
अपना वात्सल्य
तुम पर लुटा दिया
पहले तो
बुढापे मे तुमने जन्म लिया
और फिर भी
ना उसके प्रेम का
तुम पर असर हुआ
जो तुम्हारे लिये ही जीती थी
तुम्हारे लिये ही सांस लेती थी
जिसका दिन
तुम्हारी खिलखिलाहट
से शुरु होता था
और तु्म्हारे सोने पर
रात्रि होती थी
उस माँ के भी
निस्वार्थ प्रेम की
ना तुमने कद्र की
तुम्हें पल नहीं लगा
उसे छोडकर जाने में
कैसी विरह व्यथा में
वो माँ रही
कैसी उसने पीर सही
कि आँखों से अश्रु
इतना बहे कि
एक पतनाला ही
बहने लगा
जब उद्धव ने बृज में
नन्द के घर का पता पूछा
तो बताने वाले ने
यही कहा
ये जो पतनाला बह रहा है
इसके किनारे किनारे चले जाओ
और जहाँ पर इसका सिरा मिले
वो ही नन्द बाबा का घर
इसका उदगम स्थल है
कभी सोचा तुमने
उस माँ के विरह की व्यथा को
जो उम्र भर
पालने में सिर्फ़
तुम्हारा ही अक्स देखती रही
उधो को भी चुप
जिसने करा दिया
चुप हो जाओ उधो
देखो मेरा लाल सोता है
कैसे तुम्हारे प्रेम में
बावरी हो गयी
जिसकी भूख नींद प्यास
सब तुम्हारे साथ ही गयी
फिर भी ना तुमने
पीडा देने मे कोई
कसर छोडी
जो एक बार गये
तो ना मुडकर देखा
उस माँ के प्रेम की
कितनी कठिन
परीक्षा तुमने ली
कि मिले भी तो तब
जब 100 साल बाद
कुम्भ का मेला हुआ
और ये मिलन भी
कोई मिलन हुआ
ये तो सिर्फ़ तुमने
स्वंय को सिद्ध करने के लिये
और अपने वचन को
प्रमाणित करने के लिये
भरम पैदा किया
क्योंकि वचन दिया था तुमने
"मैं मिलने जरूर आऊँगा"
बस हर जगह
सिर्फ़ स्वंय को प्रमाणित
करने के लिये
तुमने दरस दिया
वरना तो किसी की पीडा
या दर्द से ना
तुम्हारा ह्रदय
व्यथित हुआ
जब एक करुणामूर्ति
माँ के लिये
ना तु्म्हारा ह्र्दय पसीजा
तो कैसे तुम्हें सुख स्वरूप कहूँ
क्योंकि
तुम तो परपीडा मे ही
आनन्दित होते हो
और उसे दर्द ही दर्द देते हो
क्रमश: ………
6 टिप्पणियां:
अनोखे भाव से सजी रचना ... अलग अंदाज़ की रचना ...
भावों का सहज स्राव।
उफ़! इतने उलहाने.
ऐसा लगता है यशोदा माँ का
हृदय ही आपके हृदय में समा
गया है......
जय हो यशोदा मैया की.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-03-2014) को "सैलाव विचारों का" (चर्चा मंच-1548) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
saras v sundar post hetu badhai vandna ji !
वाह
उत्कृष्ट विषय को केंद्रित करके, अद्भुत लेखनी आपकी।
बहुत सुन्दर रचना
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