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सोमवार, 2 जून 2014

असार में फिर सार कहाँ ढूंढते हो ?

आकंठ डूबने के बाद 
सूख गयी नदी 
वाष्पित हो गया 
उसका सारा जल 
बची रही जलती रेत 
रेत पर छितरायी 
आड़ी तिरछी  धारियाँ 
जो चिन्हित करती रहीं 
कभी बहा करती थी 
एक मदमाती लहराती बलखाती 
उच्छ्रंखल नदी इस प्रदेश में 

जहाँ एक उम्र के बाद
बचती नहीं निशानियाँ भी 
सूख जाता है सकोरे का सारा पानी 
और उग आती हैं कँटीली झाड़ियाँ 
वहाँ 
सिर्फ निशानदेहियों पर ही 
उगाई जाती हैं नयी सभ्यताएं 
बिना जाने कारण और निवारण 
नदियों के गुप्त हो जाने का 


उसी तरह 
जीवन से एक उम्र के बाद 
क्या प्रेम के अणु भी इसी तरह विध्वंसित होते हैं 
और होते रहते हैं निशानदेही पर पुनः पुनः निर्माण 
बिना जाने कारण और निवारण 
सृष्टि चक्र का चलते जाना अनवरत 
किस बात का सूचक है 

क्या सिर्फ इतना भर कि 
'प्रेम'  महज एक जीवनयापन का दिशासूचक भर है 
बंधु 
असार (संसार) में फिर सार कहाँ ढूंढते हो ?




3 टिप्‍पणियां:

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

असार = संसार, जानकारी में नहीं था।

shalini rastogi ने कहा…

संसार की इसी असारता में ही समस्त सार छिपा है ... और प्रेम उस सारता का सूचक है ... गहन दर्शन को समेटे सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

Ankur Jain ने कहा…

उसी तरह
जीवन से एक उम्र के बाद
क्या प्रेम के अणु भी इसी तरह विध्वंसित होते हैं
और होते रहते हैं निशानदेही पर पुनः पुनः निर्माण
बिना जाने कारण और निवारण
सृष्टि चक्र का चलते जाना अनवरत
किस बात का सूचक है

क्या सिर्फ इतना भर कि
'प्रेम' महज एक जीवनयापन का दिशासूचक भर है
बंधु
असार (संसार) में फिर सार कहाँ ढूंढते हो ?

जीवन के बेहद गहन मर्म को व्यक्त करती सुंदर रचना।।।