बैठो सबकी बुद्धि में करो निर्मल मन प्राण
कलमकार की कलम सदा चलती रहे निर्बाध
शब्द शब्द में झलके तुम्हारी महिमा अपार
पीली सरसों सा खिल उठे हर मन
पावन ऋतु बसंत सा हो हर आँगन
कोयल की कुह कुह हो और पिया का संग
राधा श्याम मयी हो अब हर प्रेमी का मन
आओ करें सब मिलकर माँ शारदे को कोटि कोटि नमन
बसंत पंचमी की शुभकामनाओं से खिले उठे हर मन
6 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut sundar prarthana
वसंत पंचमी
बहुत ही सुंदर ॥
बहुत सुंदर ॥
सार्थक रचना
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