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शनिवार, 24 जनवरी 2015

माँ शारदे



विद्या की अधिष्ठात्री का आज करूँ आह्वान 
बैठो सबकी बुद्धि में करो निर्मल मन प्राण 

कलमकार की कलम सदा चलती रहे निर्बाध 
शब्द शब्द में झलके तुम्हारी महिमा अपार 

पीली सरसों सा खिल उठे हर मन 
पावन ऋतु बसंत सा हो हर आँगन 

कोयल की कुह कुह हो और पिया का संग 
राधा श्याम मयी हो अब हर प्रेमी का मन 

आओ करें सब मिलकर माँ शारदे को कोटि कोटि नमन 
बसंत पंचमी की शुभकामनाओं से खिले उठे  हर मन 


6 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

bahut sundar prarthana
वसंत पंचमी

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत ही सुंदर ॥

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत सुंदर ॥

Onkar ने कहा…

सार्थक रचना