कभी बासंती बयार सा उमड़ता है
कभी पतझड़ी मौसम सा झरता है
मेरे जीवन के हर आरोह अवरोह में
कभी बांसुरी की तान सा लरजता है
कहीं कृपा के खजाने खोल देता है
कहीं विष को भी अमृत कर देता है
अजब तेरी माया अजब तेरी लीला
कहीं गरीब की पांत में मुझे ही रखता है
क्या मैं काबिल नहीं जो मेरी बारी
अपनी कृपा के रूप बदल देता है
और एक प्रश्नचिन्ह की सलीब पर
मेरा ही अक्स टांग देता है
जाने तेरे मन में क्या है समाया...........माधव !!!
कभी पतझड़ी मौसम सा झरता है
मेरे जीवन के हर आरोह अवरोह में
कभी बांसुरी की तान सा लरजता है
कहीं कृपा के खजाने खोल देता है
कहीं विष को भी अमृत कर देता है
अजब तेरी माया अजब तेरी लीला
कहीं गरीब की पांत में मुझे ही रखता है
क्या मैं काबिल नहीं जो मेरी बारी
अपनी कृपा के रूप बदल देता है
और एक प्रश्नचिन्ह की सलीब पर
मेरा ही अक्स टांग देता है
जाने तेरे मन में क्या है समाया...........माधव !!!
3 टिप्पणियां:
यही तो ईश्वर की अलौकिकता है जिसे समझ पाना कठिन है।
उसकी मर्जी को समझना बहुत कठिन है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर
मेरे द्वारा क्लिक कुछ फोटोज् देखिये
एक टिप्पणी भेजें