निहारूँ छवि जब जब आईने में
खुद को न पहचान पाऊँ
रंग सांवला होने लगा है
सखी री
जियरा बावरा होने लगा है
कोई पिया बसंती छुप गया है
मेरा रंग रूप ले उड़ गया है
कित खोजूँ मैं रंग की गागर
जो मिल जाये खोया यौवन
ये कैसा पिया से आलिंगन हुआ है
श्याम रंग मेरा हो गया है
प्रीत के रंग की गुलाबी गागर में
जियरा मेरा उलझ गया है
श्याम से मिलन को तरस गया है
यूं ही नहीं सलोना रंग मेरा हुआ है
श्याम का ही मुझ बावरिया पर
सखी री
शायद परछावां पड़ा है
तभी तो तन मन सब
श्याममय हुआ है
अब की श्याम ने
ये कैसा रंग डाला
रंग सांवला होने लगा है
सखी री
जियरा बावरा होने लगा है
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