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गुरुवार, 12 नवंबर 2009

यादों के झरोखों से ..............अन्तिम भाग

ज़िन्दगी एक नई दिशा की ओर घूमने लगी ...........अनजाने मोडों से गुजरती न जाने कौन सी राह की ओर ले जा रही थी । रवि और मैं एक बार फिर आपस में कहीं न कहीं टकराने लगे और ज़िन्दगी के इस मोड़ के बारे में सोचने लगे। शायद दोनों को ही अपनी -अपनी गलती का अहसास हो चुका था । ज़िन्दगी के थपेडों ने हमें बता दिया था कि अकेले ज़िन्दगी जीनी इतनी आसान नही होती और सफलता पा लेना सफल जीवन का प्रमाण नही होता। हम दोनों को ही समझ आ गया था कि अपनी नादानियों की वजह से हमने एक अटूट रिश्ते को तोड़ दिया था । अपने -अपने अहम के कारण आज हमारा जीवन तिनके- सा बिखर गया था। शायद इसीलिए कहा गया है कि ज़िन्दगी का दूसरा नाम समझौता है क्यूंकि अब तक भी तो हम दोनों अपनी -अपनी ज़िन्दगी से और ज़िन्दगी में आए हालातों से समझौता ही तो कर रहे थे। अगर उस वक्त हमने ये छोटे -छोटे समझौते कर लिए होते और एक दूसरे को समझने की कोशिश की होती , एक दूसरे की गलतियों को एक -दूसरे को समझाने की कोशिश की होती तो आज शायद ये हालात न होते। ज़िन्दगी में कभी न कभी किसी न किसी से समझौते करने ही पड़ते हैं तो फिर जिसे हम चाहते हैं उसके साथ क्यूँ नही कर सकते , वहां अपने अहम को आडे क्यूँ ले आते हैं । मगर शाख से टूटे पत्ते भी कहीं शाख से दोबारा जुडा करते हैं यही सोच हम अपनी ज़िन्दगी जी रहे थे मगर वो कहते हैं न कि जो रिश्ता भगवान ने बनाया हो उसे कौन तोड़ सकता है। एक दिन अचानक फिर हम दोनों उसी मन्दिर में टकराए जैसे पहली बार टकराए थे और जैसे ही एक -दूसरे को देखा तो वो लम्हात एक चलचित्र की भांति आंखों के सामने घूम गए और उस पल हमें लगा कि शायद भगवान की भी यही मर्ज़ी है की हम दोनों एक -दूजे के लिए ही बने हैं । और उस दिन अपने -अपने अहम को तोड़ते हुए दोनों ने एक बार फिर अपने- अपने दिल की बात कही और एक नए सिरे से ज़िन्दगी जीने की सोची।
अब एक बार फिर हम दोनों उसी बंधन में बंध गए थे जिसे अपनी नादानियों के कारण तोड़ चुके थे। ज़िन्दगी के अर्थ अब हमें समझ आ चुके थे।

15 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"शायद भगवान की भी यही मर्ज़ी है की हम दोनों एक -दूजे के लिए ही बने हैं । और उस दिन अपने -अपने अहम को तोड़ते हुए दोनों ने एक बार फिर अपने- अपने दिल की बात कही और एक नए सिरे से ज़िन्दगी जीने की सोची।
अब एक बार फिर हम दोनों उसी बंधन में बंध गए थे जिसे अपनी नादानियों के कारण तोड़ चुके थे। ज़िन्दगी के अर्थ अब हमें समझ आ चुके थे।"

ये कहानी वास्तव में बहुत बढ़िया रही!
आपका लेखन सफल रहा।

Anshu Mali Rastogi ने कहा…

बंधन में बंधने के लिए शुभकामनाएं।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ज़िन्दगी के थपेडों ने हमें बता दिया था कि अकेले ज़िन्दगी जीनी इतनी आसान नही होती और सफलता पा लेना सफल जीवन का प्रमाण नही होता। bilkul sahmat hoon.... yeh bahut achchci line kahi aapne.....

aapko pata hai...main is kahani ka ant jaan ne ke liye bahut utsuk tha.... abhi bhi achchanak yeh laga ki aapne aapne iska ant post kiya hai....aisa intuition hua tha.... aur intuition sahi nikla....

Ego..... bahut khraab cheez hoti hai.... pyar khatm sirf ego ki wajah se hi hota hai.... pyar aur rishtey mein kabhi bhi ego nahi hona chahiye .......wahi rishta safal hota hai jismein ego na ho....

chaliye...kahani ka ant bahut sukhad raha... aage bhi aisi hi bhaavna pradhaan kahani padhne ko milengi...... aapki lekhni ko naman....


Dhanyawaad........


saadar

Mahfooz..

अजय कुमार ने कहा…

मैं इसे समझौता नहीं , परिस्थिति के अनुरूप
ढलना कहूँगा

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

देर आयद दुरस्त आयाद .... और यही समझदारी भी कही जाती है !

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दना जी पूरी कहानी तो नहीं पढी कुछ दिन की अनुपस्थिती के लिये क्षमा चाहती हूँ समय मिलते ही जरूर पढूँगी मगर सकारात्मक अन्त देख कर लगता है कि कहानी बहुत अच्छी है शुभकामनायें

सदा ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

jevan ki sachhai se poobroo karaati achhee kahaani thee ... ant bhi achhaa laga ...

मनोज कुमार ने कहा…

साथ निभाने को संग खाई है जो क़समें
छोटी सी बात पर क्यों फैसला बदल लूं।
बहुत खूबसूरत अंत।

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

बेहतरीन रचना
maine apney blog pr ek lekh likha hai- gharelu hinsa-samay mile to padhein aur comment bhi dein-

http://www.ashokvichar.blogspot.com


मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। यदि संभव हो तो पढ़ें-

http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

ज़िन्दगी के अर्थ अब हमें समझ आ चुके थे।
AAT SUNDER

Science Bloggers Association ने कहा…

आपकी यादों ने हमें भी भावुक कर दिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

ज़िंदगी साफगोई से जियी जाए तो कभी समय और मुसीबत आड़े नहीं आती , यह बात और है कि समय और हालात कभी कभी हमें वर्तमान के काफी पीछे छोड़ आता है.
यह वही समय होता है जब हम आपसी विश्वास औए धैर्य के सहारे फिर से सही राह पर पहुँच जाते हैं.
अच्छी सकारात्मक सोच है.
- विजय

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

सार्थक और सफल लेखन है.

वाणी गीत ने कहा…

एक बार में पूरी कहानी पढ़ गयी ....अहम् के टकराव से हुए विवाद और वापस सुलझने की गाथा ....अंत भला तो सब भला ...!!