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बुधवार, 29 मई 2013

प्रेम कभी नहीं होता स्खलित


प्रेम मोहताज़ नहीं होता
किसी अवलंबन का
प्रेम का बीज
स्वतः  अंकुरित होता है
नहीं चाहिए प्रेम को
कोई आशा ,
कोई अपनापन
कोई चाहत
प्रेम स्फुरण
आत्मिक होता है
क्योंकि प्रेम
प्रतिकार नहीं चाहता
प्रेम के बदले
प्रेम नहीं चाहता
फिर क्या करेगा
किसी ऊष्मा का
किसी नमी का
किसी ऊर्जा का
प्रेम स्व अंकुरण है
बहती रसधार है
फिर कैसे उसे
कोई पोषित करे
प्रेम तो स्वयं से
स्वयं तक पहुँचने का
जरिया है
फिर कैसे खुद को खुद
से कोई जुदा करे
कैसे कह दें
प्रेम स्खलित हो जायेगा
प्रेम कुछ पल के लिए
सुप्त बेशक हो जाये
अपने में ही बेशक
समा जाये
मगर प्रेम कभी
नहीं होता स्खलित
प्रेम तो दिव्यता का भान है

बुधवार, 22 मई 2013

पूर्णविराम से पहले !!!!!!!!

अर्धविराम की अवस्था हो
मगर राह ना सूझती हो
वर्णसंकर सी पगडण्डी हो
मगर राही ना कोई दिखता हो
अन्जान द्वीपों सी भटकन हो
मगर रूह ना कोई मिलती हो
एक आखिरी दांव खेला हो
और पासा भी उल्टा ही पड़ा हो
बताओ तो ज़रा फिर
चौसर के खेल में
कब शकुनी कोई जीता है और धर्मराज कोई हारा है ...........पूर्णविराम से पहले !!!!!!!!

सोमवार, 13 मई 2013

आँख में पड़ी किरकिरी सा रडकता तुम्हारा वजूद


आँख में पड़ी किरकिरी सा रडकता तुम्हारा वजूद 
देखो तो कभी मोती बन ही नहीं पाया 
जानते हो क्यों .............
क्योंकि 
मैने सहेजा था सिर्फ़ प्रेम को और तुमने अपने अहम को 
सिर्फ मन रुपी माखन चुराना 
या प्रीत के नयन बाण चलाना ही काफी नहीं होता 
प्रीत निभाने के भी कुछ दस्तूर हुआ करते हैं ........मोहन ! 
अगर तुम हो तो ........

रविवार, 5 मई 2013

यूं ठगे जाने का शौक यहाँ भी तारी नहीं


जो नहीं अपना बनाना 
जो नहीं मिलने आना 
जो नहीं दरस दिखाना 
फिर नहीं हमारा तुम्हारा 
निभाव मोहन ! 
यूं ठगे जाने का शौक 
यहाँ भी तारी नहीं 

मन के बीहड़ों में जाऊं 
या कपडे रंगाऊं 
कहो तो मोहन 
कौन सा जोग धरूँ
जो तुम्हारे मन भाऊँ 
गर नहीं है बताना 
नहीं रास रचाना 
फिर नहीं हमारा तुम्हारा 
निभाव मोहन !

जो एक कदम तुम बढाओ 
तो दूजा मैं भी धराऊँ 
जो तुम नैन मिलाओ 
तो मैं भी मतवाली बन जाऊं 
जो तुम प्रेम का प्रतिउत्तर प्रेम से दो 
तो मैं भी प्रेममयी बन जाऊं 
गर नहीं है ऐसा कोई इरादा 
बस झूठा ही है सारा बहकाना 
और अधर में है लटकाना 
फिर नहीं हमारा तुम्हारा 
निभाव मोहन !