पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

रविवार, 23 नवंबर 2014

मोहन ! कल जो तुम मुस्कुराते मिले



मोहन !
कल जो तुम मुस्कुराते मिले 
मेरी जन्मों की साध मानो पूर्ण किए 

अब खोजती हूँ मुस्कुराने के अर्थ 
जाने कौन से भेद थे छुपे 
अटकलें लगाती हूँ 
मगर प्यारे 
तुम्हारे प्रेम की न थाह पाती हूँ 

जाने कौन सी अदा भा गयी 
जो इस गोपी पर दया आ गयी 
प्रेम की यूं बाँसुरी बजायी 
मेरी प्रीत दौड़ी चली आई 

और न कुछ मेरी पूँजी है 
ये अश्रुओं की खेती ही बीजी है 
जो तुम इन पर रिझो बिहारी 
तो अश्रुहार से करूँ श्रृंगार मुरारी 

हे गोविन्द! हे केशव! हे माधव !
अब विनती यही है हमारी 
छ्वि ऐसी ही दिखलाया करना 
जब जब निज चरणन में बुलाया करना 

नैनन में जो बसी छवि प्यारी 
मैं भूली अपनी सुध सारी 
प्रीतम बस यही है मेरी प्रीत सारी 
तुझ पर जाऊँ तन मन से बलिहारी 




 (कल शनि अमावस्या पर बाँके बिहारी के दर्शनों का उनकी कृपा से सौभाग्य प्राप्त हुआ और मेरा मन खोजने लगा अकारण करुणा वरुणालय की कृपा का कारण )

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

आज कैसा वक्त आ गया है

आज कैसा वक्त आ गया है जहाँ संत शब्द से इंसान का विश्वास ही उठ गया जहाँ कदम कदम पर ढकोसले बाज सामने आ रहे हों वहाँ कैसे इंसान किसी पर विश्वास कर सकेगा ये तो अलग बात है उससे जरूरी बात है कि अब जनता के विश्वास को कोई इस तरह न ठग सके उसके लिए सरकार ठोस और निर्णायक कदम उठाए ताकि आगे कोई खुद को संत कहने से पहले करोडों बार सोचे या संत बनने से पहले ………आज जरूरी है जितने भी देश में आश्रम खोले हुए हैं उनका हर महीने सरकार द्वारा अवलोकन हो बाकायदा तलाशी अभियान चालू हो और वहाँ सरकार अपना ऐसा कोई बॉक्स आदि लगाये जहाँ वहाँ रहने वाले शिकायत डाल सकें और वहाँ होती अनैतिक गतिविधियों की जानकारी दे सकें और ये बॉक्स सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय जाएं तब जाकर ऐसे आश्रमों की अनैतिक गतिविधियों पर लगाम कसी जा सकती है वरना विचारणीय बात ये है कि एक आश्रम में हथियारों का क्या काम और दूसरी बात तहखाने बनाने आदि जो भी ऐसी जगह हों वो फ़ौरन बंद कर दी जाएं तब जाकर जनता को कुछ विश्वास होगा वरना तो ऐसे लोग फिर वो आसाराम हों या रामपाल या कल कोई और जनता के विश्वास को ठगते रहेंगे ………और सबसे बडी बात क्या संतताई की आड में कल ऐसा नहीं हो सकता कोई आतंक का पर्याय बन जाये या  पडोसी देश का गुप्तचर और वहाँ से आतंकवादी गतिविधियाँ संचालित होने लगें क्योंकि जब एक अदना से इंसान को पकडने के लिए इतनी पुलिस लगी और उसने कमांडो तक तैनात कर रखे थे तो सोचने वाली बात है कल किस हद तक समस्या गहन हो सकती है दूसरे शत्रु देश इसका फ़ायदा उठा सकते हैं तो वो वक्त आए उससे पहले अब जरूरी हो गया है कि हर आश्रम के लिए कडे और सख्त नियम बनाए जाएं फिर चाहे वो कितना ही बडा संत हो ………यदि इन लोगों को इसी तरह छूट दी जाती रही तो देश की सुरक्षा के मद्देनज़र दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं इसलिए सबसे बडी बात देश की सुरक्षा एकता और अखंडता से बडा कोई धर्म नहीं हो सकता ये बात सबको समझ आनी चाहिए …………

शनिवार, 15 नवंबर 2014

जब एकान्त कचोटे और भीड भी



जहाँ न पीढियों की उपेक्षा है 
न सदियों का सहवास 
न कुंठा के त्रास 
न विद्रूपताओं के आकाश 
समीप दूर के गणित से परे 
जहाँ महकते हों मन के गुलाब 

स्थितियों परिस्थितियों से गुजरता प्राणी 
खोज को नहीं करता प्रयाण 
किसी हिमालय की गुफ़ा में 
 नहीं पाता दिग्दर्शन 
मन:स्थिति के परिवर्तन का 
जहाँ हो हर शंका का निवारण 
तब तक नही जान पाता ये सत्य 

जब एकान्त कचोटे और भीड भी 
शायद उससे परे भी है कोई ब्राह्मी स्थिति

बुधवार, 5 नवंबर 2014

बंजर अश्रुबिन्दु ---एक अवस्था



सुनो कान्हा
आज राधा का स्वर चिन्तित था
ये अलौकिक प्रीत का डर था
प्रियतम निकट था मगर फिर भी
बिछड जाने का भय था
गज़ब का समर्पण था
सम्मोहन था
प्रेम का अद्भुत रंग था
ना जाने कौन सी छाया ने घेरा था
जो राधे के मुखमंडल पर छायी
विषाद की रेखा थी
यूँ ही नही आज राधा का मन आधा था
यूँ ही नही आज राधा ने थामा
कान्हा का कान्धा था


आह! प्रीत भी कैसी होती है
भय से जिसकी नज़दीकी होती है
प्रेमी के बिछडने के भय मे ही
एक ज़िन्दगी बसर होती है
मगर ये महज एक कोरा भ्रम तो ना था
राधा को कुछ तो अंदेशा हो गया था
तभी तो आज कान्हा के कांधे पर
थकित उदास राधा का मन
श्यामली चितवन मे खो गया था
जैसे पी जाना चाहती हो आज ही
सारा प्रेमरस एक ही घूंट मे
जैसे जी जाना चाहती हो आज ही
उम्र की हर घडी एक ही पल मे
जैसे समा जाना चाहती हो आज ही
मोहन की मोहिनी मोहन मे
उफ़ ! ये नारी ह्रदय कितना व्याकुल था
जो एक अंदेसा मन मे उपजा था
उसी मे चिन्तातुर था
प्रीत की शायद यही तो रीत होती है
प्रेमी से बिछडने की कल्पना भी असह्य होती है
वहाँ राधा ने जैसे सब जान लिया था
शायद आने वाले कल को भांप लिया था
तभी तो आज अपने श्याम के कांधे पर
मुरलिया की छांव मे
अश्रु तो ना ढलकाया था 


मगर
शब्दों से परे मोहन भी जान गये थे
तभी तो आज वो भी व्याकुल हुये थे
और राधा को यूँ निहार रहे थे
जैसे समा लेना चाहता हो सागर
अपने आगोश मे सारे जहान के जलप्रपात को
जैसे मिलन और बिछडने की अन्तिम वेला
के बीच की महीन लकीर को
पार करना चाहकर भी पार ना करते हों
और अपनी अपनी हदों मे खडे
सिर्फ़ प्रेम की छिटकी चाँदनी को पीते हों
एक दूजे के होने पर भी
ना होने की लक्ष्मण रेखा
के बीच जैसे आज चाँद सुलगा हो
और मोहन को जैसे आज चाँद ने ठगा हो


ये कैसी सागर की असीम शांति थी
जो तूफ़ान का संकेत बनी थी
कल की ना जिसे खबर थी
वो आज ही कुछ लम्हों मे सिमटी थी
अन्तिम विदाई की बेला मे
शायद ये ही अन्तिम मिलन रहा होगा
तभी तो श्याम ने ना कुछ कहा होगा
यूँ ही नही राधा का मुख कुम्हलाया होगा
यूँ ही नही लम्हा वहाँ ठिठका होगा


तभी तो देखो ना
हर पत्ते , हर बूंटे , हर डाल और पात पर
कैसी खामोश उदासी छायी है
मधुबन भी ये देख सकपकाया होगा
सुना है कुछ अघटित घटित होता है
तो उससे पहले अपशकुन होने लगते हैं
है ना मोहन! देखो ना
यूँ ही नही राधा की खामोश खामोशी ने सब ताड लिया है

शायद तभी
सौ साल के बिछोह की अव्यक्त अभिव्यक्ति थी राधा के मुखकमल पर छायी उदासी