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बुधवार, 10 नवंबर 2010

कभी दूर होकर भी पास होता है

कभी दूर होकर भी पास होता है
कभी पास होकर भी दूर होता है 
सांवरे ये प्रेम के कैसे भंवर पड़े हैं
जिसमे ना डूबती हूँ ना तरती हूँ
तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ
आस की हर डोर तोड़ चुकी हूँ
तेरा ही गुणगान किया करती हूँ
तेरे दरस को ही तरसती हूँ 
सांवरे तुझ बिन हर पल तड़पती हूँ 
कभी दरस दिखाना कभी छुप जाना 
कभी अपना बनाना कभी बेगाना
तेरी आँख मिचोनी से भटकती हूँ
प्रेम की पीर ना सह पाती हूँ
दिन रात बस राधे राधे रटती हूँ
फिर भी ना तेरी कृपा बरसती है
सांवरे तेरे प्रेम में ऐसे तड़पती हूँ
जैसे सागर में मीन प्यासी 
विरह वेदना ना सह पाती हूँ
तुझसे दूर ना रह पाती हूँ

13 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत तराशी हुई रचना है, आनंद आगया.

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

कविता रावत ने कहा…

तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ
आस की हर डोर तोड़ चुकी हूँ
तेरा ही गुणगान किया करती हूँ
तेरे दरस को ही तरसती हूँ
.....Sundar prem manuhaar karti rachna...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम में निकटा की विमा एक नया आकार ले लेती है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कभी दूर होकर भी पास होता है
कभी पास होकर भी दूर होता है
सांवरे ये प्रेम के कैसे भंवर पड़े हैं
जिसमे ना डूबती हूँ ना तरती हूँ
तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ..
---
कृष्ण की भक्ति से सराबोर रचना पढ़कर हम भी इस सागर में गोते लगाकर तृप्त हो गये!

rashmi ravija ने कहा…

विरह वेदना ना सह पाती हूँ
तुझसे दूर ना रह पाती हूँ
विरह की वेदना...में डूबी हुई मार्मिक रचना

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

रागात्‍मक भावों का सुंदर अंकन।

---------
ब्‍लॉगर पंच बताएं, विजेता किसे बनाएं।

shikha varshney ने कहा…

क्या बात है.. बहुत खूब.

Dorothy ने कहा…

दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

विरह वेदना को दर्शाती हुई सुंदर रचना के लिए बधाई.

ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत खूब .

डा.मीना अग्रवाल ने कहा…

प्रेम की पीर वही जानता है जिसने किसी से प्रेम किया हो.हृदय के भावों को उकेरती सुंदर रचना.



डॉ.मीना अग्रवाल

amar jeet ने कहा…

विरह वेदना न सह पाती हूँ
तुझसे न दूर रह पाती हूँ
अच्छी रचना !