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शनिवार, 2 नवंबर 2013

अब तुम्हारी याद में सुलगती नहीं लकड़ियाँ


जाने कौन सी बिजली गिरी कि जल गया आशियाँ 
अब तुम्हारी याद में सुलगती नहीं लकड़ियाँ 
किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया है मन का हर कोना 
जाने कैसी चलायी तुमने हवा उड़ गया है हर सफहा 
खाली देग बन आंच पर जल रही हूँ 
फिर भी सुलगती नहीं कोई चिता 
ये कैसा तुमने मुझे बना दिया 
जो तुम्हारे दीदार की चाह ना जन्म लेती यहाँ 
एक प्रश्न बन कर खड़े हो जाते हो 
और उत्तर के लिए तडपाते हो 
कैसी बनायीं तुमने दास्ताँ 
मुझसे मैं भी बिछड़ गयी 
जाने किन गह्वरों में सिमट गयी 
जाने कौन सी चट्टान , कौन सी शिला बना दिया 
किसी राम के पद पखारने पर भी 
फिर से ना मिलती अपनी सूरत यहाँ 
ये कैसी खेती बुवाई है 
कौन सी खाद लगायी है 
किस ऐरावत ने जल बरसाया है 
जो अब किसी भी कोने से 
मेरा मन ना भीग पाया है 
ना फसल अब उगती है 
तुमसे भी ना शिकायत की ललक रखती है 
अजब तमाशा बना दिया 
मुझसे मुझे भी जुदा किया 
अब ना मैं हूँ ना तुम हो 
ना सम है ना विषम 
ना ही कोई मौसम 
बस लगता है जैसे 
एक पत्थर की मूरत किसी ने बना दी 
और जिसकी आँखों से मूर्तिकार ने 
अविरल धारा  अश्रुओं की बहा दी 
अब मूरत दिन रात सावन सी बरसती है 
गंभीर रुदन करती है 
मगर जिह्वया खामोश हो गयी है 
आँख भी बंद हो गयी है 
तुम्हारी याद में कहूँ या अपने हाल पर कहूँ  या निर्द्वन्दता कहूँ 
अब इस परिस्थिति को क्या नाम दूं …………मोहन  !

(कभी कभी किसी को हद से ज्यादा जान लेना भी दुष्कर कर देता है जीना )

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपको और आपके पूरे परिवार को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
स्वस्थ रहो।
प्रसन्न रहो हमेशा।

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी यह पोस्ट आज के (०२ नवम्बर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ये यादें......दिवाली या दिवाला ? पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

सूबेदार ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति ------!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (03-11-2013) "बरस रहा है नूर" : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1418 पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
प्रकाशोत्सव दीपावली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लगता है ज्यादा जान गये हैं पर क्या वाकई में जान लिया होता है?
बहुत सूंदर !
दीपोत्सव शुभ हो !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

Jyoti khare ने कहा…

वाह!!! बहुत सुंदर !!!!!
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई--

उजाले पर्व की उजली शुभकामनाएं-----
आंगन में सुखों के अनन्त दीपक जगमगाते रहें------