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शनिवार, 20 जून 2015

क्या चाहते हैं ?

क्या चाहते हैं ? 
क्या होगा यदि पूरी हो जायेगी ?
क्या दूसरी चाहत न जन्म लेगी  ?

बस इसी फेर में गुजरती ज़िन्दगी के सिलसिले 
एक दिन ऊबकर पलायन कर जाते हैं 
और खाली कटोरे सा वजूद 
भांय भांय करता डराता है 

पलायन 
आखिर कब तक ?
और किस किस से ?
यहाँ तो हर क्रिया कलाप पर कर्म का पहरा है 
क्या कर्म से विमुख हुआ जा सकता है ?
क्या कर्तव्य विहीन जीवन तटस्थ होकर जीया जा सकता है ?

तटस्थता 
यानि बुद्ध होना 
या कुछ और ?
अर्ध रात्रि में डराते प्रश्नों के कंकाल 

जबकि पता हैं उत्तर भी 
फिर भी 
प्रश्न हैं कि दस्तक दिए जाते हैं 

कपालभाति कितना ही कर लो 
जीवन योग के अर्थ अक्सर  नकारात्मक ही मिला करते  हैं 

आत्मिक यंत्रणाओं को मापने के अभी नहीं बने हैं यंत्र 
जहाँ मन बैरागी भी है उल्लासी भी 
जहाँ मन विरक्त भी है संपृक्त भी 


अनुलोम विलोम की जाने कौन सी परिभाषा है ज़िन्दगी ?

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Udan Tashtari ने कहा…

अनुलोम विलोम की जाने कौन सी परिभाषा है ज़िन्दगी ?- कौन जाने?