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सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

मैं बंजारन

 
 
मैं बंजारन
आधी रात पुकारूँ
पी कहाँ पी कहाँ

वो छुपे नयनन की कोरन पे
वो लुके पलकों की चिलमन में
वो रुके अधरों की थिरकन पे

अब साँझ सवेरे भूल गयी हूँ
इक पथिक सी भटक गयी हूँ
कोई मीरा कोई राधा पुकारे
पर मैं तो बावरी हो गयी हूँ

प्रेम की पायल
प्रीत के घुँघरू
मुझ बंजारन के बने सहाई
अब तो आ जाओ मोरे कन्हाई
कि
इश्क मुकम्मल हो जाए
बंजारन को उसका पी मिल जाए 
 
जानते हो न
ये आधी रात की आधी प्यास है .........गोविन्द

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