गतांक से आगे ..........
हर नारी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब वो सिर्फ़ अपने लिए जीना चाहती है या सिर्फ़ अपने लिए जीती है। अब अर्चना की ज़िन्दगी भी अपना रूप बदलने लगी थी । परिवार को समर्पित अर्चना के पास, अब वक्त ही वक्त था। अब उसके बच्चे बड़े हो गए थे । अपनी अपनी पढाई में व्यस्त रहने लगे । पति व्यापार में व्यस्त और अर्चना ..............उसके लिए अब वक्त पाँव पसारने लगा । दिन का एक -एक लम्हा एक -एक युग बनने लगा। उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे.ऐसे में उसकी सहेली ने उसकी सहायता की.उसे उसके पुराने शौक की याद दिलाई.हाँ .............जिस शौक को वो भूल चुकी थी । अब वो ही शौक उसके तन्हा लम्हों का साथी बनने लगा. अर्चना को बचपन से ही कवितायेँ लिखने का शौक था.मगर घर की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते वो अपने शौक को भूल ही चुकी थी।
अब अर्चना की ज़िन्दगी कल्पना की उड़ान पर एक बार फिर रंग भरने लगी। उसने एक बार फिर कवितायेँ लिखना शुरू किया और पत्रिकाओं में छपवाने लगी। अब अर्चना का भी अपना एक मुकाम बनने लगा। लोग उसे जानने लगे और वो भी बेजोड़ कवितायेँ लिखने का प्रयास करने लगी। धीरे- धीरे उसके अनेक प्रशंसक बनने लगे.उसकी अपनी एक अलग पहचान बनने लगी । लोग उसे सराहते और वो भी औरों की कवितायेँ पढ़ती और उन्हें सराहती। ज़िन्दगी अपनी ही धुन में गुजरने लगी।
और अब कुछ इस तरह अर्चना अपनी कल्पनाओं में रंग भरने लगी.
हर नारी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब वो सिर्फ़ अपने लिए जीना चाहती है या सिर्फ़ अपने लिए जीती है। अब अर्चना की ज़िन्दगी भी अपना रूप बदलने लगी थी । परिवार को समर्पित अर्चना के पास, अब वक्त ही वक्त था। अब उसके बच्चे बड़े हो गए थे । अपनी अपनी पढाई में व्यस्त रहने लगे । पति व्यापार में व्यस्त और अर्चना ..............उसके लिए अब वक्त पाँव पसारने लगा । दिन का एक -एक लम्हा एक -एक युग बनने लगा। उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे.ऐसे में उसकी सहेली ने उसकी सहायता की.उसे उसके पुराने शौक की याद दिलाई.हाँ .............जिस शौक को वो भूल चुकी थी । अब वो ही शौक उसके तन्हा लम्हों का साथी बनने लगा. अर्चना को बचपन से ही कवितायेँ लिखने का शौक था.मगर घर की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते वो अपने शौक को भूल ही चुकी थी।
अब अर्चना की ज़िन्दगी कल्पना की उड़ान पर एक बार फिर रंग भरने लगी। उसने एक बार फिर कवितायेँ लिखना शुरू किया और पत्रिकाओं में छपवाने लगी। अब अर्चना का भी अपना एक मुकाम बनने लगा। लोग उसे जानने लगे और वो भी बेजोड़ कवितायेँ लिखने का प्रयास करने लगी। धीरे- धीरे उसके अनेक प्रशंसक बनने लगे.उसकी अपनी एक अलग पहचान बनने लगी । लोग उसे सराहते और वो भी औरों की कवितायेँ पढ़ती और उन्हें सराहती। ज़िन्दगी अपनी ही धुन में गुजरने लगी।
और अब कुछ इस तरह अर्चना अपनी कल्पनाओं में रंग भरने लगी.
5 टिप्पणियां:
vanadana ji ,
bahut achchha pryaas hai.
kahani ek saath likhkar fir post kariye tab padhne ka maja dugna ho jayega .
salah dene ke liye kshama .
renu..
ये कैसा उधार है ये कैसी जिन्दगी है बहुत सुन्दर कविता है जिन्दगी के कर्ज़ चुकाते तो सारा जीवन बीत जाता है । नायिका ने बहुत अच्छा प्रयास किया है बधाई
ये कैसा उधार है
ये कैसी किश्तें हैं
देते देते ज़िन्दगी
कम पड़ जाती
बहुत गहरी लेकिन असलियत बयां करती पंक्तियाँ...अर्चना के माध्यम से कही गयी शशक्त रचना...
नीरज
ये कैसा उधार है
ये कैसी किश्तें हैं
देते देते ज़िन्दगी
कम पड़ जाती
बहुत गहरी लेकिन असलियत बयां करती पंक्तियाँ...अर्चना के माध्यम से कही गयी शशक्त रचना...
नीरज
नायिका को एक पहचान मिल गई। बहुत खूब।
ये कैसा उधार है
ये कैसी किश्तें हैं
देते देते ज़िन्दगी
कम पड़ जाती
वाह क्या बात है।
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