गतांक से आगे ..............................
एक बार अजय को चित्रकारी के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ उसे प्राप्त करने के लिए उसे अर्चना के शहर जाना था। जाने से पहले अजय ने ये खुशखबरी अर्चना को ख़त लिखकर पहुंचाई और साथ ही अर्चना से मिलने की इजाजत मांगी और अपना फ़ोन नम्बर दिया । उससे पूछा कि क्या वो उससे मिल सकती है सिर्फ़ एक बार या एक बार फ़ोन पर ही मुबारकबाद दे सकती है । मगर अपने संस्कारों और मर्यादाओं से बंधी अर्चना ने उससे मिलने से मना कर दिया।
जिस दिन अजय को सम्मान प्राप्त हुआ हर ओर उसकी चित्रकारी की ही प्रशंसा थी। हर टी वी के चैनल पर उसी का नाम था। चारों तरफ़ से अजय को बधाइयाँ मिल रही थीं मगर जिस आवाज़ को वो सुनना चाहता था या जिस चेहरे को वो देखना चाहता था उस भीड़ में बस वो ही एक चेहरा ,वो ही एक आवाज़ न थी । इतनी बड़ी सफलता पाकर भी अजय को वो खुशी न मिल सकी जिसकी उसे दरकार थी। जिस कल्पना को उसने अपने रंगों में ढाला था ,जो उसकी प्रेरणा थी वो इतने पास होकर भी इतनी दूर थी। एक कसक के साथ अजय अपने शहर वापस आ गया ।
उधर अर्चना को अजय की शोहरत पर गर्व हुआ। उसने अपने परिवार में सबको अजय की उपलब्धि के बारे में बताया। उसने बताया कि अजय उसका कितना बड़ा प्रशंसक है और वो भी उसकी चित्रकारी कितनी पसंद करती है । उसकी हर कविता के साथ अजय के ही चित्र छपते हैं। वो दिन अर्चना के लिए भी काफी खुशगवार था। मगर साथ ही उसे इस बात का भी अहसास था कि उसने अजय का दिल दुखाया है और शायद अजय को भी पता था कि कैसे दिल पर पत्थर रखकर अर्चना ने न कहा होगा। अपने इन्ही अहसासों को और अजय के दिल पर क्या गुजरी होगी ,कितना तडपा होगा उसे अर्चना ने अपनी कविताओं में ढालना शुरू कर दिया। शायद ये भी उस तड़प के इजहार का एक रूप था ।
क्रमशः .................................
एक बार अजय को चित्रकारी के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ उसे प्राप्त करने के लिए उसे अर्चना के शहर जाना था। जाने से पहले अजय ने ये खुशखबरी अर्चना को ख़त लिखकर पहुंचाई और साथ ही अर्चना से मिलने की इजाजत मांगी और अपना फ़ोन नम्बर दिया । उससे पूछा कि क्या वो उससे मिल सकती है सिर्फ़ एक बार या एक बार फ़ोन पर ही मुबारकबाद दे सकती है । मगर अपने संस्कारों और मर्यादाओं से बंधी अर्चना ने उससे मिलने से मना कर दिया।
जिस दिन अजय को सम्मान प्राप्त हुआ हर ओर उसकी चित्रकारी की ही प्रशंसा थी। हर टी वी के चैनल पर उसी का नाम था। चारों तरफ़ से अजय को बधाइयाँ मिल रही थीं मगर जिस आवाज़ को वो सुनना चाहता था या जिस चेहरे को वो देखना चाहता था उस भीड़ में बस वो ही एक चेहरा ,वो ही एक आवाज़ न थी । इतनी बड़ी सफलता पाकर भी अजय को वो खुशी न मिल सकी जिसकी उसे दरकार थी। जिस कल्पना को उसने अपने रंगों में ढाला था ,जो उसकी प्रेरणा थी वो इतने पास होकर भी इतनी दूर थी। एक कसक के साथ अजय अपने शहर वापस आ गया ।
उधर अर्चना को अजय की शोहरत पर गर्व हुआ। उसने अपने परिवार में सबको अजय की उपलब्धि के बारे में बताया। उसने बताया कि अजय उसका कितना बड़ा प्रशंसक है और वो भी उसकी चित्रकारी कितनी पसंद करती है । उसकी हर कविता के साथ अजय के ही चित्र छपते हैं। वो दिन अर्चना के लिए भी काफी खुशगवार था। मगर साथ ही उसे इस बात का भी अहसास था कि उसने अजय का दिल दुखाया है और शायद अजय को भी पता था कि कैसे दिल पर पत्थर रखकर अर्चना ने न कहा होगा। अपने इन्ही अहसासों को और अजय के दिल पर क्या गुजरी होगी ,कितना तडपा होगा उसे अर्चना ने अपनी कविताओं में ढालना शुरू कर दिया। शायद ये भी उस तड़प के इजहार का एक रूप था ।
क्रमशः .................................
6 टिप्पणियां:
पल -पल में कितनी मौत
मर- मर कर जिया होगा
हँसी का कफ़न
चेहरे को ऊढाकर
कैसे हँसा होगा
ये जानती हूँ मैं
is asmanjas ke rishte ko ba-khubi aapne ukera hai. aise mein jo hriday ke udgaar hote hain unhein aapne bahut hi sundarta se apne shabdon mein sameta hain.
badhai..
id mubaarak aur dashhare ki shubhkaamna...
वाह-वाह क्या बात है। आपकी ये रचना दिल तक उतर गयी।बहुत खुब, बधाई।
वाह...
बहुत बढ़िया।
अर्चना के भावों को वन्दना ने अपनी कविता में
बहुत अच्छा पिरोया है।
बहुत बधाई!
बेहद खुब्सूरत रचना......
अजय और अर्चना की कहानी बहुत बढ़िया चल रही है।
बधाई, आपके अचछे लेखन के लिए।
बहुत अच्छी कहानी चल रही है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा ।
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