दोस्तों
ज़िन्दगी में कभी नही सोचा था कहानी लिखने का ।
एक प्रयास कर रही हूँ जिसमें आप सबके सहयोग की
आकांक्षी हूँ । मेरे दो ब्लॉग हैं ------'ज़िन्दगी' और 'ज़ख्म'
उन पर अपने ह्रदय के उदगार प्रगट करती हूँ ।
अब यह एक नया प्रयास है जिसमें प्रेम और विरह को
नमन है ।
प्रेम और विरह का स्वरुप
प्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,
कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।
प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।
प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।
बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।
प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्य
दिन-ब-दिन बढ़ता ही है । जो सुख मिलन में नही वो सुख विरह में है
जहाँ प्रेमास्पद हर क्षण नेत्रों के सामने रहता है और इससे बड़ा
सुख क्या हो सकता है । बस इसी विरह और प्रेम का सम्मिश्रण है ये
अमर प्रेम ।
ज़िन्दगी में कभी नही सोचा था कहानी लिखने का ।
एक प्रयास कर रही हूँ जिसमें आप सबके सहयोग की
आकांक्षी हूँ । मेरे दो ब्लॉग हैं ------'ज़िन्दगी' और 'ज़ख्म'
उन पर अपने ह्रदय के उदगार प्रगट करती हूँ ।
अब यह एक नया प्रयास है जिसमें प्रेम और विरह को
नमन है ।
प्रेम और विरह का स्वरुप
प्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,
कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।
प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।
प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।
बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।
प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्य
दिन-ब-दिन बढ़ता ही है । जो सुख मिलन में नही वो सुख विरह में है
जहाँ प्रेमास्पद हर क्षण नेत्रों के सामने रहता है और इससे बड़ा
सुख क्या हो सकता है । बस इसी विरह और प्रेम का सम्मिश्रण है ये
अमर प्रेम ।
7 टिप्पणियां:
वाह वन्दना जी बहुत सही विश्लेश्न किया है प्यार और विरह का विरह ना होती तो लगता है 90% कवि ना होते। बधाई है इस न्लाग के लिये पहली पोस्ट हिट है शुभकामनायें
naye blog ke liye badhai, shuruat me hi ek satya varnan,,,,badhai ke kabil hai..
बहुत बधाई हो वन्दना जी!
अच्छा आगाज़ है।
बेहतरीन परवाज़ है।।
शुभकामनाएँ!
मगर टिप्पणी करने के लिए दो-दो
मर्यादाएँ क्यों?
कृपया शब्द-पुष्टिकरण हटा दें।
विरह जीवन की वास्तविकता है,प्रेम की चरम अनुभूति है,यह वो सत्य है जिसके आगे जीवन एक नये मोड के साथ एक नया आयाम ग्रहण करता है.
वह विरह ही है जो तमाम तरह की विवशताओ और सामाजिक मर्यादाओ के बीच मनुष्य के भीतर के अन्तर्द्वन्द को अपने अनोखे स्वरूप मे प्रतिम्बिम्ब करती है, और वास्तव मे यह द्वन्द और कशमकश जितना सकारात्मक और मर्यादाओ से सुसज्जित होगा मेरा विश्वास है कि उस प्रेम के पौधे पर उतनी ही सुगन्धित सुरभि सुवासित होगी.
वास्तव मे विरह मनुष्य की व्यथा के बीच उसके त्याग और समर्पण की कहानी को रेखान्कित करती है,और यह कहानी तब और खूबसूरत हो जाती है जब मनुष्य बिना अपेक्षा के किसी से बेपनाह मुहब्बत करता है.
मुझे आपकी कविता का एक अन्श अनायास याद आ गया.
किसी की चाहत में ख़ुद को मिटा देना बड़ी बात नही
गज़ब तो तब है जब उसे पता भी न हो
शायद आपकी यह पन्क्ति पर्याप्त होगी कुछ कहने के लिये.
आपको निमंत्रण है पहले आइयेगा
बाद में टिप्पणी पाइयेगा
फरीदाबाद में ब्लॉगर महा सम्मेलन हो रहा है
न जाने ब्लॉगर कहां कहां खो रहा है
फरीदाबाद में स्नेह का विस्तार होगा
हमें उस स्म्मेलन में आपका इंतजार होगा।
https://mail.google.com/mail/?nsr=1&zx=1f1f99qd10s6i&shva=1#search/%3Csahityashilpi%40gmail.com%3E/123998961d2f69d9 चटकाएं और निमंत्रण पायें
सादर , ससम्मान
Kahanee aage padhneka intezaar rahega!
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
pyar ki paribhasha sachmuch sarahneey. badhai!!
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