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गुरुवार, 17 सितंबर 2009

अमर प्रेम ------------भाग ४

गतांक से आगे .................................

कभी कभी कुछ रिश्ते अनजाने में ही बन जाते हैं । पता नही ये रिश्ता था या प्रेम या सिर्फ़ अहसास ...............मगर अनजाने ही ज़िन्दगी का एक नया मोड़ बन गया।
अजय ने एक बार अपनी तस्वीर भेजी और अर्चना से भी आग्रह किया मगर अर्चना ऐसा कुछ नही चाहती थी जिससे उसकी खुशहाल गृहस्थी में कोई ग्रहण लगता,इसलिए उसने मना कर दिया । अजय जब भी ख़त लिखता हर बार एक तस्वीर भेजने का अनुरोध करता और अर्चना हर बार उसका आग्रह ठुकरा देती । अजय जानना चाहता था कि उसकी कल्पना दिखने में कैसी लगती है ........क्या बिल्कुल वैसी जैसा वो सोचता था या उससे भी अलग। मगर अर्चना अपनी किसी भी मर्यादा को लांघना नही चाहती थी।

अजय का भी एक हँसता खेलता खुशहाल परिवार था । उसकी पत्नी और दो बच्चे । पूर्ण रूप से संतुष्ट । मगर वो कहते हैं ना कहानीकार हो ,कवि हो,लेखक हो या चित्रकार ---------एक अलग ही दुनिया में विचरण करने वाले प्राणी होते हैं। दुनिया की सोच से परे एक अलग ही दुनिया बसाई होती है जहाँ ये ख़ुद होते हैं और इनकी कल्पनाएं । कल्पनाएं भी ऐसी जो हकीकत से परे होती हैं मगर फिर भी उसी में विचरण करना इनका स्वभाव बन जाता है । शायद ऐसा ही ह्रदय अजय का भी था। उसके चित्रों में सिर्फ़ प्रेम ही प्रेम बरसा करता था। शायद प्रेम का कोई रूप ना था जो उसने बयां ना किया हो प्रेम की तड़प,प्रेम की पराकाष्ठा इतनी गहन होती कि देखने वाला कुछ पलों तक सिर्फ़ उसी में विचरण करता रहता था । ठगा सा वहीँ खड़ा रह जाता। ऐसा कोमल ह्रदय था अजय का और ऐसी थी उसकी कल्पनाएँ। अब उसे उसकी प्रेरणा भी मिल गई थी अर्चना के रूप में । अर्चना में वो अपनी कल्पना की नायिका को देखने लगा । एक अनदेखा रिश्ता कायम हो गया था अजय की तरफ़ से । अब अजय अपनी नायिका के ख्वाबों में विचरण करने लगा था। मिलने की उत्कंठा तीव्र होने लगी थी। मगर शहरों की दूरियां थी साथ ही समाज की बेडियाँ ।
दोनों ही एक दूसरे के प्रेरणास्पद बन गए । मगर अर्चना के लिए अजय सिर्फ़ एक अहसास था एक सुखद अहसास----------जो उसके जज्बातों को ,उसकी भावनाओं की गहराइयों को समझता था और वो अपने इन्ही अहसासों के साथ जीना चाहती थी । कुछ इस तरह ---------------

इक हसीन अहसास बना
आ तुझे पलकों में बसा लूँ
अहसास जो सिमट जाए अंखियों में
तुझे दिल के आसन पर बिठा लूँ
दिल जब खो जाए अहसासों में
तुझे रूह के दामन में झूला लूँ
रूह जब मिल जाए तेरी रूह से
फिर तेरे मेरे अहसासों को खुदा बना लूँ



क्रमशः ..........................................

5 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

अंतिम के दो पंक्तियाँ कमाल की है .......शुक्रिया

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! अत्यन्त सुंदर!

vandana gupta ने कहा…

वन्दना जी!
आपका "एक प्रयास" सराहनीय है।
धारावाहिक सुन्दर है और अच्छा चल रहा है।
बधाई!

Prem Farukhabadi ने कहा…

bahut doob ke likh rahi ho . badhai!!

निर्मला कपिला ने कहा…

कहानी के प्रति उत्सुकता बढ रही है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा शुभकामनायें