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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

अमर प्रेम -----------भाग ११

गतांक से आगे .......................

ये लम्हा दोनों की ज़िन्दगी का एक हसीन , मधुर याद बनकर यादों में क़ैद हो गया था । ज़िन्दगी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी थी । अब अजय की उत्कंठा कुछ हद तक शांत हो गई थी । अब एक बार फिर से उसकी चित्रकारी के रंग शोख होने लगे थे। अपनी भावनाओं को , अपनी कल्पनाओं को वो चित्रों में जीवंत करने लगा था। मगर ये पागल मन उसका -----अब भी कभी- कभी बेचैन कर देता था। उसकी अंखियों की , उसकी रूह की प्यास तो कुछ हद तक बुझ गई थी मगर फिर भी कहीं एक कसक अब भी बाकी थी । उसकी वो ही कसक कभी -कभी सिर उठाने लगती। बार -बार उसके मन को उद्वेलित करती । भावनाओं का ज्वार ह्रदय को आंदोलित कर जाता। इन्ही भावनाओं के अतिरेक में बहते हुए फिर एक दिन उसने अर्चना से मिलने की इच्छा जाहिर की । अर्चना भी अब चाहती थी कि अजय के इंतज़ार को विराम मिले इसलिए वो अजय से वादा लेती है कि वो इस मिलन के बाद ज़िन्दगी में फिर कभी उससे मिलने की ख्वाहिश जाहिर नही करेगा और न ही कुछ और मांगेगा । अजय अर्चना की शर्त मान लेता है । अजय की तो मनचाही मुराद पूरी हो रही थी । उसके पाँव जमीन पर नही पड़ रहे थे । दिल में उमंगो का अथाह सागर हिलोरें ले रहा था।
और फिर वो दिन आ गया जब दोनों एक- दूसरे के सामने बैठे थे। एक -दूसरे का दीदार कर रहे थे। मगर दोनों में से कोई भी एक शब्द नही बोला। सिर्फ़ मौन ही मौन की भाषा सुन रहा था और मौन ही विचारों को अभिव्यक्त कर रहा था।घंटों व्यतीत हो गए । समय का दोनों को भान ही न था या यूँ कहो समय भी जैसे उस पल वहीँ ठहर गया था। वो भी इस मिलन की परिणति देखना चाहता था। वो भी तो कब से इस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था। काफी देर बाद दोनों को वक्त का बोध हुआ तो अजय ने अर्चना से कहा ------अर्चना तुम मेरे जीवन का वो अंग बन गई हो जिसके बिना एक पल गुजारना मुश्किल हो जाता है । तुम मेरी वो कल्पना हो जो साकार हो गई है --------मेरे सामने बैठी है और मैं उसे छू भी नही सकता, उसे महसूस भी नही कर सकता। तुम मेरे जीवन -रुपी महासागर की वो अतुल्य सम्पदा हो जिसे मैं खोना भी नही चाहता मगर पा भी नही सकता। बताओ अर्चना अब जीवन कैसे गुजरेगा ? और अर्चना अजय के भावों को जानकर विस्मित सी , ठगी सी बैठी रह गई । उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या बोले । मगर फिर भी किसी तरह ख़ुद को संयत करके अर्चना ने अजय से कहा ------अजय हम दोनों का जीवन धरती और आकाश सा है । दोनों एक दूसरे को निहार तो सकते हैं मगर मिलना दोनों की किस्मत में नही है । देखो मेरे जीवन का हर रंग , हर मौसम , हर खुशी , हर गम , मेरा हँसना , मेरा रोना, मेरा प्यार, मेरी खुशबू सब मेरे पति की है । मैं तुम्हें कुछ नही दे सकती। क्यूँ इस मृगतृष्णा के पीछे भागकर अपना जीवन बरबाद कर रहे हो । मैं शरीर से और आत्मा से पूर्ण रूप से अपने पति की हूँ। इस पर अजय ने कहा कि उसके जीवन में अजय का क्या मुकाम है सिर्फ़ इतना बता दो तो अर्चना ने कहा कि वो एक ऐसा सुखद अहसास है जिसके साथ पूरी ज़िन्दगी इत्मिनान से गुजर सकती है वो और उसे इससे ज्यादा किसी चीज़ की चाह भी नही है। मगर अजय तो जैसे आज प्रण करके आया था कि एक बार अर्चना से हाँ कहलवा कर ही रहेगा कि वो भी उसे प्रेम करती है । उसने अर्चना से कहा कि तुम प्रेम को अहसास का नाम दे रही हो । वास्तव में तुम भी उसे प्रेम करती हो मगर मानना नही चाहती । अगर तुम भी प्रेम करती हो तो एक बार स्वीकार कर लो, मेरा जीवन तुम्हारे इंतज़ार में ,अगले जनम में मिलन की आस में आराम से गुजर जाएगा। इस जनम तुम किसी और की हो मुझे कोई गिला नही बस एक वादा दे दो कि अगले जन्म में तुम मेरी बनोगी मगर अर्चना न जाने किस मिटटी की बनी थी या कहो किस पत्थर की बनी थी किसी भी दर्द का शायद उस पर असर ही नही होता था । उसने कहा कि वो जन्म -जन्मान्तरों तक सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने पति की ही है । वो अजय से किसी भी प्रकार का कोई वादा नही कर सकती। तब अजय ने कहा अच्छा चलो सिर्फ़ एक वादा दे दो कि इस कायनात के आखिरी जन्म में तुम सिर्फ़ एक बार मुझे मिलोगी सिर्फ़ एक बार , मैं तब तक तुम्हारा इंतज़ार करूँगा। बस यही मेरे प्रेम का प्रतिफल होगा।
अब अर्चना ने कहा कि इसका मतलब तुम्हारा प्रेम वास्तविक प्रेम नही उसमें भी सभी की तरह वासना है तभी तुम मुझे पाने की चाह रखते हो । अर्चना के ये शब्द अजय के दिल पर हथोडे की तरह लगे। उसके दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए । फिर भी अजय ने कहा अगर उसके प्रेम में वासना होती तो वो अगले जन्मों या आखिरी जन्म तक की बात न कहता और अपनी वासनामयी प्रवृति इसी जन्म में किसी भी बहाने पूर्ण करना चाहता। मगर मुझे तुम्हारा शरीर किसी भी जन्म में नही चाहिए। मैं तुम्हें छूना भी नही चाहता। बस सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि किसी एक जन्म में तुम मुझे रूह से चाहो। तुम्हारी रूह और मेरी रूह एक हो जायें। जहाँ तुम कुछ सोचो और पूरा मैं करुँ बिना तुम्हारे कहे। जहाँ मैं फूल की खुशबू की तरह तुमसे कभी अलग न हो सकूँ। दो जिस्म बेशक हों मगर आत्मा एक हो । जहाँ वेदना की लकीर भी गर तुम्हारे चेहरे पर उभरे तो दर्द से बेहाल मैं हो जाऊँ। मुझे तुमसे कुछ नही चाहिए। अर्चना सिर्फ़ एक जन्म के लिए तुम मेरे जीवन का वो पल बन जाओ जिसके बाद कोई चाहना ही बाकी न रहे। क्या तुम इतना सा वादा भी नही कर सकती मुझसे। मैं तुमसे कुछ नही चाहता--------कुछ भी नही और न ही कभी ज़िन्दगी में चाहूँगा। बस सिर्फ़ इतना अहसान कर दो मेरी ज़िन्दगी पर।
अर्चना स्तब्ध सी अजय को एकटक देखे जा रही थी। आज उसे समझ आया कि वास्तव में प्रेम क्या है उसका स्वरुप क्या है। क्या अजय सच कह रहा है? क्या वाकई एक जन्म के वादे पर कोई कायनात के आखिरी जन्म तक किसी का इंतज़ार कर सकता है?क्या प्रेम ऐसा भी होता है ? क्या इसे ही सच्चा प्रेम कहा गया है? इसी ऊहापोह में डूबी अर्चना न जाने कब तक बैठी रहती कि अजय ने उसे वास्तविकता का बोध न कराया होता। वक्त अपनी गति से चल रहा था मगर अर्चना के दिल में तो जैसे ज्वार उठ रहे थे। आज अजय उसे यूँ लग रहा था जैसे साक्षात् प्रेम ही अजय के रूप में इंसानी रूप धारण करके बैठा हो। अर्चना के मुख से बोल नही फूट रहे थे । जिसे वो इंसानी प्रेम समझ रही थी वो तो खुदाई प्रेम था।
और वक्त वहीँ ठहर गया। बिना एक शब्द बोले मौन की चादर ओढ़कर दोनों ने एक -दूसरे से विदा ली । अजय सीधा चलता चला गया। बिना मुडे ,बिना अर्चना की ओर दोबारा देखे -----बस चलता चला गया। शायद आज अजय की वेदना जो वो बरसों से महसूस कर रहा था उसे करार मिल गया था या शायद अब कहने को कुछ बचा ही नही था या जो कुछ वो कहना चाहता था वो सब आज वो कह चुका था। मगर अर्चना उसके लिए तो वक्त जैसे वहीँ रुका था उस एक लम्हे पर ही . वो अजय को जाता हुआ देखती रही.......................

क्रमशः...............................

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

hmmmm.....bina bole bhi bahut kuch kaha ja sakta hai..... yeh is kahani mein dekha ....

ab aage ka intezaar hai......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वक्त वहीँ ठहर गया। बिना एक शब्द बोले मौन की चादर ओढ़कर दोनों ने एक -दूसरे से विदा ली । अजय सीधा चलता चला गया। बिना मुडे ,बिना अर्चना की ओर दोबारा देखे -----बस चलता चला गया। शायद आज अजय की वेदना जो वो बरसों से महसूस कर रहा था उसे करार मिल गया था या शायद अब कहने को कुछ बचा ही नही था या जो कुछ वो कहना चाहता था वो सब आज वो कह चुका था। मगर अर्चना उसके लिए तो वक्त जैसे वहीँ रुका था उस एक लम्हे पर ही . वो अजय को जाता हुआ देखती रही.......................

कहानी मन पर गहरी छाप छोड़ती जा रही है।
बहुत-बहुत बधाई!

admin ने कहा…

प्रभावकारी चित्रण, आगे की प्रतीक्षा रहेगी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी कहनी है। देखें आगे होता है क्या?

जोगी ने कहा…

aaj pehli baar aapke blog par pahuncha aur khani padhi...but i couldnt stop myself to start reading from the beginning till the latest part...Good story...
Waiting for the next part...

निर्मला कपिला ने कहा…

अच्छी चल रही है कहानी बहुत छोटा सा भाग देती हैं अगली कडी का इन्तज़ार शुभकामनायें

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दना तुम ने उस दिन कहा था कि कहानी समाप्त हो चुकी है मगर तुम ने खुद कहानी के आगे क्रमश लिखा है । वसे इतनी छोटी कहानी को छोटे छोटे से टुकडों मे देना कहानी के साथ अन्याय है दो या तीन पार्ट मे चाहिये थी ये कहानी|। धन्यवाद्

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दना तुम ने उस दिन कहा था कि कहानी समाप्त हो चुकी है मगर तुम ने खुद कहानी के आगे क्रमश लिखा है । वसे इतनी छोटी कहानी को छोटे छोटे से टुकडों मे देना कहानी के साथ अन्याय है दो या तीन पार्ट मे चाहिये थी ये कहानी|। धन्यवाद्