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बुधवार, 23 मार्च 2011

मुझे भी अपना बना लेना

पुकारना नही आता
पूजन नही आता
वन्दन नही आता
नमन नही आता
बस
स्मरण करना
व्याकुल होना
और अश्रु बहाना
यही मेरी पूंजी है
मोहन ये आह
क्या तुम तक
पहुंचती है?
क्या तुम्हे भी
याद आती है
क्या तुम भी
विरह मे
तडपते हो?
निर्विकार
निर्मोही
निर्लेप हो
जानती हूँ
फिर भी
सुना है
किसी के लिये
तुम भी तड्पते हो
उस किसी मे
एक नाम मेरा भी
जोड लेना
राधा नही बनना
बस बंसी बना
अधरों पर
सजा लेना
मुझे भी
श्री अंग लगा लेना
प्राण रस फ़ूंक देना
अमृत रस बरसा देना
श्याम ,मुझे भी
अपना बना लेना



ये उस दिन सुबह लिखी गयी थी जिस दिन जापान मे सुनामी का कहर बरपा था और शायद एक कहर इस तरह मेरे दिल पर भी बरपा था या शायद आगत का कोई संदेशा था ये और दिल से ये उदगार फ़ूट पडे।

15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहन!!

Rakesh Kumar ने कहा…

कहतें हैं
कलियुग केवल नाम आधारा,सुमरि सुमरि नर उतरो परा.
स्मरण करना ,व्याकुल होना,और अश्रु बहाना तो बहुत बड़ी पूँजी है आपके पास.और क्या चाहिये ?
जब आपकी आह हमारे दिल तक पहुँच रही है तो उस तक तो अवश्य पहुँच ही रही है.भक्ति भावों से यूँ ही नहाते नहलाते रहिएगा.

Rakesh Kumar ने कहा…

कहतें हैं
कलियुग केवल नाम आधारा,सुमरि सुमरि नर उतरो परा.
स्मरण करना ,व्याकुल होना,और अश्रु बहाना तो बहुत बड़ी पूँजी है आपके पास.और क्या चाहिये ?
जब आपकी आह हमारे दिल तक पहुँच रही है तो उस तक तो अवश्य पहुँच ही रही है.भक्ति भावों से यूँ ही नहाते नहलाते रहिएगा.

Satish Saxena ने कहा…

यह आवाज नहीं पंहुचेगी तो और कौन सी भाषा है जिसे वे पहचानते हैं ?? शुभकामनायें !!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

स्मरण करना
व्याकुल होना
और अश्रु बहाना
यही मेरी पूंजी है
मोहन ये आह
क्या तुम तक
पहुंचती है?
agar pahunchti ho to mujhe apna bana lena , kitni vihwalta aur masumiyat hai in panktiyon me

शिवा ने कहा…

एक हृदयस्पर्शी प्रस्तुति !शुभकामनायें !!

ZEAL ने कहा…

दुःख में , सुख में जब हम इष्ट को याद करते हैं , तो वो हमारी पुकार सुनते भी हैं , और साथ भी रहते हैं । हाँ , विधि के विधान को टाल नहीं सकते।

anshumala ने कहा…

कृष्ण से सभी की ऐसे ही जुड़ने की इच्छा होती है | अच्छी रचना |

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

भावपूर्ण

अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अश्रु बहाने में अनुभव व अभिव्यक्ति दोनो ही है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बस
स्मरण करना
व्याकुल होना
और अश्रु बहाना
यही मेरी पूंजी है
मोहन ये आह
क्या तुम तक
पहुंचती है?

अरे कान्हा नंगे पैर दौड़े चले आयेंगे .... बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Nirantar ने कहा…

bahut saarthak

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर ओर भाव पुर्ण रचना धन्यवाद

कविता रावत ने कहा…

bahut achhi bhavpurn rachna..

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये