पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जायेये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

रविवार, 17 अप्रैल 2011

मुझे शिला बनाया होता

मुझे शिला बनाया होता
अहिल्या सा तारने को
फिर राम बनकर आया होता

मुझे गंवारिन  ही बनाया होता   
शबरी सा तारने को 
फिर राम बनकर आया होता

मुझे सखी अपनी बनाया होता
द्रौपदी की लाज बचाने को
फिर श्याम बन कर आया होता 

श्याम कुछ तो अपना बनाया होता
चाहे खाक ही चरणों की बनाया होता
फिर धूल झाड़ने को ही सही
अपना हाथ तो बढाया होता 

मुझे भी गले से लगाया होता
एक बार श्याम मेरे 
मन मंदिर में तो आया होता 
एक फूल प्रेम का
मुझमे भी खिलाया होता  
फिर चाहे राम बनकर 
चाहे श्याम बनकर
आया होता  
मुझे भी प्रेमरस 
पिलाया होता

27 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समर्पण की सुन्दर पंक्तियाँ।

समयचक्र ने कहा…

मुझे अहिल्या बनाया होता ... बहुत ही भावपूर्ण रचना ... बधाई

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
बधाई ......

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
बधाई ......

nilesh mathur ने कहा…

वाह! क्या बात है, भक्ति रस में डूब गए!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

राम श्याम में रची बसी सुन्दर अभिव्यक्ति

siddheshwar singh ने कहा…

अच्छे विचार - अच्छी अभिव्यक्ति !!

kshama ने कहा…

Har bhakti ras me doobee naaree kee antarng ichhaa!

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रचना में बहुत अच्छे प्रतीको का प्रयोग किया है आपने!
--
सुन्दर रचना!

Satish Saxena ने कहा…

सदाबहार विषय और मधुर रचना ....शुभकामनायें आपको !

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

प्रेमानुभूति पर अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति...

ana ने कहा…

nek vichar......sundar post....dil ko chhoo gayi

Rakesh Kumar ने कहा…

आपके भक्ति भाव को प्रणाम.प्रेमरस अब आप पियेंगी ही नहीं सभी को अवश्य पिलायेंगी.
आपकी भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार.

Shikha Kaushik ने कहा…

मुझे सखी अपनी बनाया होता
द्रौपदी की लाज बचाने को
फिर श्याम बन कर आया होता
bahut bhamaye panktiyan .sundar bhavabhivyakti .badhai .

संजय भास्‍कर ने कहा…

ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥
बहुत सुन्दर चित्रण .... एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

udaya veer singh ने कहा…

kya baat hai ,rachana dharmita ka nirvahan aakhir kalam se pravahit ho hi gaya . sunder abhivykti . aabhr

Anupama Tripathi ने कहा…

sunder abhivyakti ...!!

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर....वह स्वय ही शिला बनाता है स्वयं ही तारणहार बनता है...भाव मयी रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

चाहे राम बनकर
चाहे श्याम बनकर
आया होता
मुझे भी प्रेमरस
पिलाया होता... premras se aastha se bhari rachna

आनंद ने कहा…

मुझे गंवारिन ही बनाया होता शबरी सा तारने को फिर राम बनकर आया होता....

वाह वंदना जी सारे प्रतीक मनोहारी ....बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे. !!

राज भाटिय़ा ने कहा…

्वाह यह तो मन से निकली आवाज लगती हे, अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति, धन्यवाद

मेरे भाव ने कहा…

प्रेम और भक्ति रस से सरोबार पोस्ट.

kavita verma ने कहा…

sunder abodh chah..

रजनीश तिवारी ने कहा…

चाहे खाक ही चरणों की बनाया होताफिर धूल झाड़ने को ही सहीअपना हाथ तो बढाया होता
ishwar prem aur bhakti ki sundar abhivyakti

monali ने कहा…

Aapko Vandana banaya h... nit prabhi k charno me samarpit ho jaane k lie...sundar bhav purna kavita behad pasand aayi :)

Parul kanani ने कहा…

sahaj-sarthak shaili...prabhavi rachna!