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मंगलवार, 29 मार्च 2011

अब कैसे नव सृजन हो ?...................100 वीं पोस्ट

शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?

चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो ?

ह्रदय तरु पर
कुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?

शून्यता मे आरुढ
हर आरम्भ और अंत
भेदभाव विरहित
आत्मानंद
सृष्टि का विलोपन
अब कैसे नव सृजन  हो?

27 टिप्‍पणियां:

मीनाक्षी ने कहा…

ये शब्द और अर्थ/उनके भाव/ सब तुम्हारे हैं/सुन्दर सृजन तुम्हारा/कैसे हो सकते हैं अर्थहीन..!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सबसे पहले 100वीं पोस्ट की आपको बधाई प्रेषित करता हूँ!
--
शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?
--
सभी का यह ही हाल है!
आपने बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!

Aruna Kapoor ने कहा…

उम्मीद पर कायम है जीवन...नवसॄजन फिर भी होगा!...एक सुंदर कविता से साक्षात्कार हुआ है!

राजेश उत्‍साही ने कहा…

शतक तो बन ही गया न। बधाई।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ह्रदय तरु पर
कुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
utkrisht prashnon ka srijan

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आद. वंदना जी,
१०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें !

जीवन,काव्य, क्रिकेट में १०० का बड़ा महत्व !
काव्य अगर छू ले इसे प्राप्त करे अमरत्व !

आपकी काव्य-यात्रा रोज नई ऊँचाइयों को छूती रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नवसृजन फिर भी होगा। बधाई।

anshumala ने कहा…

सौवी पोस्ट की बधाई |

नई राहे नया चिंतन नए शब्द कुछ और नया सृजन करेंगे |

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

वधाई वंदनाजी इस १००वी रचना की !

Rakesh Kumar ने कहा…

१०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
' शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो'
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

Asha Joglekar ने कहा…

चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो ?
सृजन तो हो ही रहा है चाहे िस सृजन की चिंता के बहाने । खूबसूरत प्रस्तुति ।

Udan Tashtari ने कहा…

100 वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

ZEAL ने कहा…

हमेशा की भाँती एक उत्कृष्ट रचना । १०० वीं रचना के लिए बधाई।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?...

बहुत ही कोमल भावनाओं की रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Unknown ने कहा…

sachi ka satak nahi laga koie baat nahi aap ne satak pura kiya badhai ho......

jai baba banaras....

संजय भास्‍कर ने कहा…

१०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें ....वंदना जी,

संजय भास्‍कर ने कहा…

१०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुतबहुत बहुतबहुत बहुत बधाई

hem pandey ने कहा…

ऐसी स्थिति सर्जक में अस्थायी रूप से आ जाती है |

Anupam Singh ने कहा…

Anupam Abhivyakti!!

कविता रावत ने कहा…

ह्रदय तरु पर
कुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
...sanshay kee sthti mein bhi srajan ka hona lajmi hai, itnee bhavpurn rachna iska anutha udaharan ban baitha hai..
bhavpurn rachna ke liye haardik badhai

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आदरणीय वंदना जी,
नमस्कार
100 वी पोस्ट की बधाई

चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया

अच्छी पोस्ट
अब कैसे नव सृजन हो ?

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

दिन मैं सूरज गायब हो सकता है

रोशनी नही

दिल टू सटकता है

दोस्ती नही

आप टिप्पणी करना भूल सकते हो

हम नही

हम से टॉस कोई भी जीत सकता है

पर मैच नही

चक दे इंडिया हम ही जीत गए

भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!

आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सौवीं पोस्ट और फिर भी की नवसृजन कैसे हो ? ... मन की शिथिलता को बखूबी शब्दों में ढाला है

sm ने कहा…

congrats for 100th post

M VERMA ने कहा…

100वीं पोस्ट की हार्दिक शुभकामनाएँ

Unknown ने कहा…

लोग कैसे कह रहें हैं? ये एक अच्छी रचना है. सिर्फ शब्दों का हेर फेर कविता नहीं होते........... पर यहाँ तो, शब्दों को बुना गया है, विचार और शब्दों की सृष्टि ने एक कविता को जन्म दिया है. ये सुन्दर नहीं, वास्तविक कविता है....... इसे कविता कहना चाहिए......... सिर्फ शब्दों का हेर फेर कविता नहीं होते.

Ashutosh Pandey ने कहा…

क्या लिख दिया तुमने .......? जीवन के मोह मैं कई जीवनों की बलि. आखिर ऐसा क्यों होता है? ....... आज ही एक कविता लिखी है..... राजेश को सपरिवार मेरी श्रृद्धांजली...... और काकी से ये सवाल ..........

एक सवाल जिन्दगी से
तू इसके होने से पहले क्या थी?
जब ये न था, तू कहाँ थी.
तू इसके, साथ है
या इसके बाद है?
पता नहीं,
अभी तो ये दिखता है
पहले दिखता था या नहीं
कब ये यहाँ आएगा
कब भोग कर जाएगा,
फिर भी मेरा सवाल
वहीं का वही रह जाएगा
तू इसके होने से पहले क्या थी?