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गुरुवार, 18 सितंबर 2014

किससे करूँ जिद

किससे करूँ जिद 
कोई हो पूरी करने वाला तो करूँ भी 
और तुम , तुमसे उम्मीद नहीं 
क्योंकि बहुत जिद्दी हो तुम 
मुझसे भी ज्यादा 
और मुझसे क्या 
इस दुनिया में सबसे ज्यादा 
फिर भला कैसे संभव है मेरा पानी पर दीवार बनाना 
देखा है तुम्हारी जिद को 
और देख ही रही हूँ जाने कब से 
कितने युग बीते तुम न बदले 
और न ही बदली तुम्हारी परिभाषा , तुम्हारे मापदंड 
वैसे भी सुना है 
जहाँ चाहत होती है वहाँ ही जिद भी होती है 
मगर मुझे तो पता ही नहीं 
तुम्हारी चाहत मैं कभी बनी भी या नहीं 
तो बताओ भला किस आस की पालकी पर चढूँ 
और करूँ एक जिद तुमसे तुम्हारे दीदार की ……ओ मोहना !!!

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया।
अब जिद करने की उम्र गयी आपकी।
--
दूसरा जन्म लेकर ही जिद करना अच्छा लगेगा अब तो सबको।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना...

Arun sathi ने कहा…

ओ मोहना...
प्रेम की अभिव्यक्ति..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

zid to karni banti hai vandana ji...
sundar bhaav...

meri 100th post pe aapka swagat hai

http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/09/blog-post.html

Sadhana Vaid ने कहा…

वाह ! बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण ! लेकिन वो ज़िद ही क्या जो पानी पर दीवार खड़ी ना कर सके ! बस हौसले और दृढ़ इच्छाशक्ति की ज़रूरत है !

मन के - मनके ने कहा…

किस आस की पालिकी पर चढूं--
बात पूरी हो गई.

मन के - मनके ने कहा…

किस आस की पालिकी पर चढूं--
बात पूरी हो गई.