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रविवार, 9 अक्टूबर 2011

कृष्ण लीला ………भाग 17

जिस दिन कान्हा खड़े हुए
मैया के सब मनोरथ पूर्ण हुए
कान्हा ठुमक ठुमक कर
चलने लगे हैं
घर आँगन में खेला करते हैं
पर देहली पर आकर रुक जाते हैं
देहली लांघने का
बड़ा उपक्रम करते हैं
पर देहली ना लांघी जाती है
और बार- बार गिर पड़ते हैं
इस लीला को देख
मैया तो आनंदित होती है
पर बलराम जी और देवताओं
को विस्मय होता है
वे मन ही मन ये कहते हैं
जिन प्रभु ने वामनावतार में
तीन पगों में
त्रिलोकी को नाप लिया था
आज कैसे रंग- ढंग बनाये हैं
जो देहली भी ना लाँघ पाए हैं
आज प्रभु के बल को
किसने चुराया है
जिन्होंने कच्छप रूप से
सुमेरु को धारण किया था
जिन्होंने वाराह रूप से
पृथ्वी को पुष्प सम उठा लिया था
जिन्होंने रावण के मस्तक काटे थे
जिन्होंने जामवंत का
बल चूर किया था
और पृथ्वी की प्रार्थना पर
भू- भार हरण को अवतार लिया था
आज वो ही त्रिलोकी नाथ
अजन्मा ब्रह्म कैसी लीला करते हैं
जिसका ना कोई पार पाता है
वो अपने घर की देहली ना लाँघ पाता है
देख देवता भी चकराते हैं
पर प्रभु की अद्भुत बाल लीलाओं का
पार ना कोई पाते हैं
बस प्रेम रस में डूबे जाते हैं
कोटि- कोटि शीश झुकाते हैं


इक दिन मैया दधि मंथन करने लगी
तभी मोहन ने मथानी पकड़ ली
मोहन मथानी पकड़ मचलने लगे
जिन्हें देख देवताओं , वासुकी सर्प
मंदराचल और शंकर जी के
ह्रदय कांपने लगे
वे मन ही मन प्रार्थना करने लगे
प्रभो ! मथानी मत पकड़ो
कहीं प्रलय ना हो जाये
और सृष्टि की मर्यादा मिट जाये
शंकर जी सोचने लगे
इस बार मंथन में निकले
विष का कैसे पान करूंगा
कष्ट के कारण समुन्द्र भी
संकुचित हो गया
पर सूर्य को आनंद हुआ
अब प्रलय होगी तो
मेरा भ्रमण बंद होगा
और लक्ष्मी भी ये सोच- सोच
मुस्कुराने लगीं
प्रभु से मेरा पुनर्विवाह होगा
प्रभु की इस लीला ने
किसी को सुखी तो
किसी को दुखी किया है
और प्रभु के मथानी पकड़ते ही
कैसा अद्भुत दृश्य बना है
पर मैया अति आनंदित हुई
जब दधि के छींटों को
प्रभु के मुखकमल पर देखा है
बार- बार मैया से माखन
माँग रहे हैं
और मैया कह रही है
कान्हा पहले नृत्य करके तो दिखलाओ
और मोहन माखन के लालच में
ठुमक- ठुमक कर नाच रहे हैं
मैया  के ह्रदय को हुलसा रहे हैं
जिसे देख सृष्टि भी थम गयी है
देवी देवता अति हर्षित हुए हैं
बाल लीलाओं से कान्हा ने
सबके मन को मोहा है

क्रमशः ..........

12 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह! वंदना जी वाह!

आनंदम ,आनंदम , आनन्दम.

आपकी पावन लेखनी को नमन.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ठुमक ठुमक कान्हा चलत।

SAJAN.AAWARA ने कहा…

jab bhagwaan hi laalch karte hain(makhan ka) t o insaan kese bach payega...
aanand aa gaya padhkar...
jai hind jai bharat

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ati manoram

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

आनंद मयी श्रृंखला....
सादर बधाई/आभार...

shyam gupta ने कहा…

वाह! सुंदर ...अति सुंदर...

Satish Saxena ने कहा…

इस रूप का जवाब नहीं .......
आभार !

Santosh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना. मनमोहक प्रस्तुति.

कृष्ण का जीवन-दर्शन अद्भुत है. कृष्ण मेरे इष्ट और आदर्श नायक है. बहुत अच्छा लिखा आपने.

कृष्ण से सम्बंधित मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

वंदना जी कान्हा की लीला का वर्णन ..अति सुखदाई मन मोहक ..आप की लेखनी यों ही हम सब को सुख देती रहे
भ्रमर ५

बार- बार मैया से माखन
माँग रहे हैं
और मैया कह रही है
कान्हा पहले नृत्य करके तो दिखलाओ
और मोहन माखन के लालच में
ठुमक- ठुमक कर नाच रहे हैं
मैया के ह्रदय को हुलसा रहे हैं

कुमार राधारमण ने कहा…

देवी-देवताओं के संदर्भ न हों,तो कृष्ण हमारे बीच के ही बालक प्रतीत होते हैं।

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

मनोहारी दृश्य की प्रस्तुति...बधाई