इन्द्र को आश्चर्य हुआ
ये ब्रजवासियों ने किसका है पूजन किया
जब इन्द्र को पता चला
क्रोधित हो उसने
मेघराज को आदेश दिया
ये ब्रजवासी अति उद्दंडी हुये
अभिमान मे चूर चूर हुये
एक बालक की बातों मे आ गये
बरसों की परम्परा को
उन्होने है तोडा
अब इसका दण्ड उन्हे भुगतना होगा
कह मेघराज को आदेश दिया
उनचासों पवनों को भी
मेघराज के साथ किया
सरदी पानी से कोई
जी्ता ना बच पाये
ब्रजवासियों संग गोवर्धन भी बह जाये
मूसलाधार वर्षा करते मेघों ने
ब्रजमण्डल को घेरा था
पवन ने भी प्रचण्ड वेग धारण कर
मेघराज का साथ दिया था
ये देख केशवमूर्ति हँसकर
बलराम जी से बोले
देखो नादान इन्द्र क्या करता है
हमारा क्रोध ब्रजवासियो पर मढता है
जब सरदी बारिश से
ब्रजवासी व्याकुल हुए
तब सभी मोहन की शरण मे आ गये
तुमने इन्द्र की पूजा है छुडवाई
देखो उसने कैसी तबाही है मचाई
अब अपने गिरिराज से कहो
वो ही रक्षा करें हमारी
वरना गोधन सहित
सभी ब्रजवासियों का
मरण पक्का समझो
तब कान्हा ने समझाया
सब गौ बछ्डे साथ ले
गोवर्धन की तलहटी मे पहुँचे
वहाँ कान्हा ने गोवर्धन को
उठाने को कहा
मगर वो 21 किलोमीटर का पहाड
ना टस से मस हुआ
तब कान्हा ने अपनी ऊँगली लगाई
देखते- देखते पहाड उँगली पर आ गया
तब सब ग्वाल बालों ने भी
अपने बाँस आदि लगाये
सारे ब्रजवासी उसके नीचे सुरक्षित हुये
साथ ही प्रभु ने
सुदर्शन को आदेश दिया
एक बूंद पानी ना गिरने पावे
ब्रज मे ना कोई नुकसान होने पावे
सुदर्शन पानी को काटे जाता था
साथ ही आज प्रभु को
एक और लीला करनी थी
अपने एक भक्त की
प्यास भी पूरण करनी थी
रामावतार मे सीता मैया ने
अगस्त ॠषि को
भोजन पर बुलाया
जब अगस्त मुनि भोजन करने बैठे
तो देखते देखते अन्न भण्डार कम पडे
जितना मैया बनाती थी
वो भी खत्म किये जाते थे
अगस्त बाबा तो जैसे
जन्मो की साध पूरी किये जाते थे
जगतजन्नी के हाथों भोजन
सबको नसीब कहाँ होता है
आज अपने भाग्य को सराहे जाते थे
और भोजन का आनन्द लिये जाते थे
जब सुबह से शाम हुई
पर बाबा की ना तृप्ति हुई
तब सीता मैया घबरा गयी
और राम जी से कर जोड
विनती करने लगी
प्रभु ये क्या चमत्कार है
अब आप ही संभालो
इनका ना पाया जाता पार है
जैसे ही अगस्त बाबा ने पानी मांगा
तभी राम जी ने उन्हे कहा
बाबा पानी के लिये तुम्हें
इन्तज़ार करना होगा
जब मै कृष्ण जन्म मे आऊँगा
इतना पानी पिलवाऊँग़ा
जन्म- जन्म की प्यास मिट जायेगी
इतना वचन दे अगस्त बाबा को विदा किया
आज वो ही वक्त था आया
अगस्त बाबा को कान्हा ने था बुलाया
अगस्त बाबा ने
अंजुलि भर- भर पानी पीया था
सात दिन और सात रात तक
पानी था बरसा
आज बाबा की प्यास को था विराम मिला
इधर कान्हा की बाली उमरिया
उस पर गोवर्धन को था धारण किया
ये देख -देख मैया घबराती थी
सबसे बस यही गुहार लगाती थी
ब्रजवासियों कान्हा का ध्यान धरो
देखो मेरो छोटो सो लाला है
तुम सब तो खाते पीते रहते हो
और वो देखो अकेला ज़रा भी ना हिलता है
तुम्हारी रक्षा को तत्पर रहता है
ये सुन गोप बोल पडे
अरे कन्हैया तू हट जा भैया
हम सब मिल कर उठा लेंगे
कान्हा ने समझाया
मेरे बिना ना तुम्हारा काम चलेगा
मगर जब सब ना माने
और कान्हा ने जैसे ही
अपनी ऊँगली खिसकायी
तड- तड करती सबकी
लकडियाँ लाठियाँ टूटने लगीं
ये देख सभी चिल्लाये
अरे कान्हा संभाल भाई
हमसे ना गोवर्धन संभाला जाये
यहाँ गोवर्धन कोई और नही
मानुष तन को है बतलाया
और जिसने इसे धारण कर रखा है
अर्थात उठा रखा है
वो ही परब्रह्म परमेश्वर है
गर वो शरीर से निकल जाये
तो जिस्म बेजान हो जाये
सात कोस का पहाड और कुछ नही ये शरीर ही है
जिसमे गोविन्द समाये हैं
गर अपने अंगुल से इसे नापेंगे
तो सात अंगुल मे ही
नख से शिख तक नाप लेंगे
प्रकट क्यों नही होते
क्योंकि हमारी आँख है खराब
जिस पर हमने है लगायी
विषयों की पट्टी
जिससे दिखता नही कुछ भी
और मै- मै करता मानव जीता है
पर प्रभु को ना पूर्ण समर्पण करता है
इधर मैया और गोपों को आश्चर्य हुआ
कैसे नन्हे से कान्हा ने
गोवर्धन उठा लिया
जब कान्हा ने देखा
ये मुझे देवता समझने लगे
तो अपनी मीठी बातों से
सबको मोहित किया
गोप कहते कान्हा कहो कैसे
तुमने गोवर्धन लिया उठाय
सुन कान्हा मुस्कुराकर बोले
एक तो तुम लोगों के माखन से
मेरा बल बढा
दूसरे तुम गोपों ने भी तो
सहायता की
तीसरे राधा रानी की कृपा से
मैने गिरिवर लिया उठाय
क्योंकि
बृषभानु ललि वहाँ पधारी थीं
जिन्हे देख कान्हा की मति भरमाई
तभी गिरिराज डोलने लगे
ये देख सबके दिल हिलने लगे
तब सखियाँ राधा को पकड
कीर्ति जी के पास ले गयीं
बृषभानु लली को ना
कान्हा के पास जाने दिया
तब कान्हा का मन स्थिर हुआ
इस तरह सात दिन सात रात
मूसलाधार पानी बरसता रहा
सुदर्शन चक्र और अगस्त मुनि ने
सारा भार संभाला था
एक बूंद पानी ना
ब्रज मे गिरने पाया था
इन्द्र ने अपनी हर संभव
कोशिश करके देख ली
तब इन्द्र को भान हुआ
ये मुझसे क्या गलत हुआ
तुरन्त गुरु बृहस्पति के पास गया
अपने से बडे आदमी की कोई
गलती गर हो जाये
गुरुदेव बतलाइये
कैसे वो सुधारी जाये
जिसका दूसरा आदमी
सम्मान करता हो
उसे आगे करके ले जाओ
गुरु ने था उपाय बताया
सुन इन्द्र गौ माता की पूंछ पकड
गोविन्द के पास पहुँचा
जैसे ही प्रभु ने
गौ माता को देखा
गलबहियाँ डाल उनसे लिपट गये
क्योंकि गाय प्रभु की इष्ट है
ये बात इंद्र को पता चल गयी थी
इसलिये इंद्र ने गाय की पूंछ पकड ली थी
इधर मौका पाकर इंद्र ने
प्रभु के चरण पकडे
रोकर अनुनय विनय करने लगा
हे प्रभु दीनानाथ निरंजन निरंकार
आपको बारम्बार प्रणाम है
मै अज्ञानी आप का पार
कैसे पा सकता हूँ
अज्ञानतावश जो कर्म किया
उसकी क्षमा चाहता हूँ
मुझमे अपने पद का
अभिमान समाया था
जिसे प्रभु ने चूर चूर किया
हम आपके बालक हैं
प्रभु क्षमा करो
गर्भ मे भी बालक
उल्टा सीधा हो जाता है
तो भी ना माँ का
वात्सल्य कम होता है
ऐसे ही हम आपके
गर्भ मे समाये बालक हैं
प्रभु कर जोड क्षमा
मांगने आया हूँ
आपके सिवा ना
तीनो लोकों मे कोई दूजा है
आपकी दया से ही मैने
इंद्र पद पाया था
हे मुरलीधर मेरा अपराध
अब क्षमा करो
तभी कामधेनु गौ भी बोल पडी
प्रभु मै ब्रह्मा की भेजी
आपके सम्मुख आई हूँ
छोटों के अपराध
बडे क्षमा करते आये हैं
दयालु कृपानिधान
अपना नाम सार्थक करो
तब प्रसन्न हो कान्हा बोल उठे
अभिमानी के दंभ का
हरण मै करता हूँ
जो भी अहंकार करे
उसके गर्व को तोड देता हूँ
तुम्हारा अपराध यद्यपि
क्षमा योग्य नही था
मगर तुमने मेरे सभी भक्तों को
गोवर्धन के नीचे एकत्र किया
इसलिये तुम्हारा अपराध
क्षमा करता हूँ
वरना ब्रह्मा का अपराध
ना मैने क्षमा किया था
क्योंकि उसने मम भक्तों को
मुझसे दूर किया था
जो भी भक्तों का अपराध करता है
वो ना मुझे भाता है
आगे से इतना ध्यान रखना
मेरे भक्तों को ना
कभी तंग करना
फिर कामधेनु और इन्द्र ने
प्रभु का पूजन वन्दन किया
और गौ दुग्ध से अभिषेक किया
प्रभु गुण गाते अपने धाम को गये
प्रभु के अलौकिक कर्म देख
ब्रजवासियों को आश्चर्य हुआ
और सबने मिलकर
नन्दबाबा को घेर लिया
बाबा तुम्हारा पुत्र ना
साधारण दिखता है
ये जरूर किसी देवता का
अवतार हुआ है
जब से जन्म लिया
तब से अलौकिक लीला करता है
साधारण मनुष्य के बस की
तो कोई बात नही
इसने खेल खेल मे
इतने राक्षसो का है उद्धार किया
हमे दावानल से भी बचाया
कालियनाग के विष से
यमुना को मुक्त कराया
इतनी छोटी उम्र मे इसने
इतने बडे गिरिराज को है उठा लिया
सच- सच बोलो बाबा
ये कौन है , कहाँ से आया है
कहीं साक्षात नारायण ने ही तो
नही अवतार लिया है
गोपों की बातें सुन
नन्दबाबा बोल पडे
गर्ग मुनि जब आये थे
तब उन्होने विलक्षण लक्षण
इसके बतलाये थे
वो बातें ना मैने किसी को बताई थीं
पर तुम्हारी शंका निवारण को
आज बतलाता हूँ
उन्होने बतलाया था
तुम्हारा ये बालक
हर युग मे
अलग- अलग रुपों मे आता है
कभी श्वेत वर्ण , कभी रक्त
तो कभी पीत वर्ण ये पाता है
इस बार कृष्ण वर्ण मे आया है
जो सबके मन को भाया है
पहले कभी वसुदेव के
यहाँ भी इसने जन्म लिया था
तभी इस बालक का नाम
वासुदेव पडा था
और गुणों और कर्मो के अनुरूप
इसके नाम पडते जायेंगे
मै तो उन नामो को जानता हूँ
पर साधारण जन ना जान पायेंगे
ये सबका कल्याण करेगा
बडी- बडी बाधाओ को पार करेगा
सबको आनन्दित करेगा
चाहे जिस दृष्टि से देखो
गुण , सौन्दर्य , ऐश्वर्य , कीर्ति या प्रभाव
तुम्हारा बालक नारायण के समान
गुणों वाला है
इसलिये इसके अलौकिक कार्य देख
ना शंका करना
दिव्य बालक ने है तुम्हारे यहाँ जन्म लिया
मगर ये बात ना किसी से कहना
तब से मै इसे नारायण का
अंश की समझता हूँ
और इसके बारे मे
ना किसी से कहता हूँ
नन्दबाबा की बातें सुन
सभी गोप विस्मित हुये
और आनन्दित हो
कान्हा की प्रशंसा करने लगे
क्रमश: ………….............
3 टिप्पणियां:
आपकी रचना बेहतरीन नही अलौकिक है.
सोचता हूँ आप कृष्ण लीला में कितना
डूब कर लिख रहीं हैं कि लेखनी चलती
ही जा रही है और बहा ले जा रही है हमें
कि कुछ भी कहने का साहस ही नही हो
पा रहा है.आपकी लेखनी के प्रवाह में बहे ही
जा रहे हैं बस.
हार्दिक नमन.
ओह! याद आया.
५ और ६ छप्पन.
यह तो छप्पन भोग का
प्रसाद लगाया है आपने.
बहुत ही लाजबाब 'कृष्ण वन्दना' है.
अब १०८ रत्न की माला
चढाने का इन्तजार है.
१००८ की उपाधि भी फिर दूर नही.
पर मैं तो अभी से कहे देता हूँ
श्री श्री १००८.. .कृष्ण वन्दना .....जी को नमन.
अगस्त मुनि की कहानी नहीं जानती थी...आभार !!
बहुत सुंदर श्रृंखला चल रही है|जय श्रीकृष्ण !!!
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