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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

कितने प्यासे हो तुम………… कहो ना ........4



सुना है 
सृजन करते करते जब थक जाते हो 
और अपनी माया समेट  लेते हो 
तब योगमाया की गोद में विश्राम करते हो 
अनंत काल तक 
उसके बाद योगमाया द्वारा तुम्हें जगाना 
और जागने के बाद ख्याल का उठाना लाजिमी है 
आखिर अपने आप में भी 
कोई कब तक समाहित रह सकता है 
जरूरत होती है उसे भी किसी साथ की 
और धारण कर लेते हो 
विविध रूप 
विविध सृष्टि 
विविध ब्रह्माण्ड 
और लग जाते हो फिर उसी दोहराव में 
जो तुम ना जाने कब से कर रहे हो 
और कब तक करते रहोगे 
कोई नहीं जानता
जानते हो क्यों ?
क्योंकि बेचैन हो तुम भी 
शायद नहीं जानते तुम भी 
आखिर तुम्हें चाहिए क्या 
गर जानते तो पा लिया होता 
क्योंकि 
सुना है तुम्हारे लिए 
कुछ भी अलभ्य नहीं 
ओह मोहन 
सोचना ज़रा कभी इस पर भी 
फुर्सत में बैठकर 
क्योंकि 
सुना ये भी है कि 
पूर्ण तो पूर्ण होता है 
उसमे किसी कामना का 
कोई बीज नहीं होता 
मगर तुम में 
अभी बाकी है कोई बीज 
यूँ ही नहीं सृष्टि निर्माण हुआ करते 
यूँ ही नहीं तुम विविध वेश धारण किया करते 
कोई तो एक कारण है तुममें 
तभी कार्य का होना संभव हुआ है 
और सुनो 
इसे खेल का नाम मत देना 
क्योंकि बच्चा भी बार - बार 
एक ही खिलौने से 
खेल - खेल कर बोर हो जाता है 
फिर तुम तो पूर्ण ब्रह्म कहलाते हो 
फिर तुम्हें क्या जरूरत थी 
बार - बार एक सी रचना रचने की 
एक सा सृजन करने की
अब तुम मानो या ना मानो 
मगर कहीं ना कहीं 
तुम्हारे भी अंतस में 
एक प्यास कायम है 
मानो पानी भरी घटायें हों और फिर भी प्यासी हों 
बस कुछ ऐसा ही तुम्हारा भी हाल है 
कितने प्यासे हो तुम………… कहो ना ! 

8 टिप्‍पणियां:

Harash Mahajan ने कहा…

"Kitne Pyaase ho tum..." Is line ki Garima ko dekhte hue Aapki Kriti ko maine Padhna chaha ,Vandana ji aapke link se aapke Blog par phooncha ye kriti ke .....jwaab meiN Mohinder ji ki kriti bhi padhii....pahla misra unka jwaab me

"समन्दर ने मुझे प्यासा किया है.... मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था....

कितनी प्यासी थी प्यास प्यासों की
एक बूंद की खातिर निचोडे कितने जाम

kuchh achha laga .lekin doosre misra kyuN kaha gaya..jab tak aapki kriti nahiN padhi jaati ...to kuch bhi nahiN kah sakta tha so yahaaN chala aaya ....

bahut sunder rachna pesh kii.....Mohinder ji ka doosra ..ab bhi hamaare ooper se nikal gayaa...


Saabhaar


Harash Mahajan

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, प्यास का यह रूप पढ़ने में अच्छा लगा।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

तुम्हारे भी अंतस में
एक प्यास कायम है
मानो पानी भरी घटायें हों और फिर भी प्यासी हों
बस कुछ ऐसा ही तुम्हारा भी हाल है
बहुत सुन्दर \
latest post महिषासुर बध (भाग २ )

pawan ने कहा…

laukik-alaukik pyas ka anutha ehsas hai ,
kaabil nahi kuch kehney ke bas itna hi kehengey ke adbhut prayas hai ..

anupam , adbhut , adwitiya...

Sa Adar

Pawan

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (18-10-2013) "मैं तो यूँ ही बुनता हूँ (चर्चा मंचःअंक-1402) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Er. AMOD KUMAR ने कहा…

Dear Vandana Jee,

Pehli bar aapki blog pe aaya to dekha ki itni sunder lekhni hain ki mere paas koi shabd hi nahi prashansa ke liye, ab to meri aadat si ho gayi daily raat mein aapki blog padhne ki.
With kind regards

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

पूरा भव सागर पी जाने के बाद भी प्यासे!!!

Unknown ने कहा…

बहुत प्रभावशाली रचना |

मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"