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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

कितने प्यासे हो तुम ……कहो ना....5



अरे अरे अरे 
रुको रुको रुको 
सुनो। ………
कोई ये सोचे उससे पहले ही बता दूं 
कि  ये सब कहने और सुनने वाले 
भी तुम ही हो सिर्फ तुम 
तुम पर ये कोई आक्षेप नहीं है 
और ये जीव कहाँ तुम्हारे भेदों को 
तुम्हारे जनाए बिना जान सकता है 
बेशक माध्यम तुमने 
इस जीव को बनाया हो 
मगर इसके अन्दर 
ये भाव यूं ही उत्पन्न नहीं हुआ है 
क्योंकि 
गीता में तुम्ही ने कहा है 
कि 
जीव के हर क्रियाकलाप 
यहाँ तक कि  उसकी 
बुद्धि के रूप में भी तुम हो 
उसके मन के रूप में भी तुम ही हो 
और उसके विचारों के रूप में भी तुम ही हो 
तो जब जीव के हर कार्य का कारण 
तुम ही हो तो बताओ भला 
जीव कैसे तुमसे पृथक हो सकता है 
या सोच सकता है 
या कह सकता है 
वैसे भी तुम्हारी इच्छा के बिना 
पत्ता भी नहीं हिल सकता 
तो फिर 
ऐसे विचार या भावों का आना 
कैसे संभव हो सकता है 
इसमें जीव की कोई 
बड़ाई या करामात नहीं है 
क्योंकि 
सब करने कराने वाले तुम ही हो 
जीव रूप में भी 
और ब्रह्म रूप में भी 
जब दोनों रूप से तुम जुदा नहीं 
तो कहो ज़रा 
ये कहने और सुनने वाला कौन है 
ये इस भाव में उतरने वाला कौन है 
सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो 
और शायद 
इस माध्यम से कुछ कहना चाहते हो 
जो शायद अभी हमारी समझ से परे हो 
मगर तुमसे नहीं 
और कर रहे हो शायद तुम भी 
समय का इंतज़ार 
जब बता सको तुम 
अपनी घुटन , बेचैनी, खोज का 
कोई तात्विक रहस्य 
किसी एक को 
जो तुमसे पूछ सके 
या पूछने का साहस कर सके 
या तुम्हारी अदम्य अभिलाषा को संजो सके 
और कह सके 
कितने प्यासे हो तुम ……कहो ना और क्यों ?

9 टिप्‍पणियां:

Jai bhardwaj ने कहा…

अद्भुद साक्षात्कार है ! आभार !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

वो कभी किसी प्रश्न का जवाब नहीं देता ,सुनता जरुर है |अच्छी रचना|
नई पोस्ट मैं

सूबेदार ने कहा…

आध्यत्मिक-----अति उत्तम
आभार

Unknown ने कहा…

Nice keep it up

Sumit Tomar ने कहा…

क्या खूब शब्दों का इस्तेमाल किया है वंदना जी
खुबसूरत कविता
बधाई

http://jazbaaat.blogspot.in

बेनामी ने कहा…

gahan bhavon ko udghatit karti rachna .aabhar

kshama ने कहा…

Bahut sundar! Diwali mubarak ho!

ALBELA KHATRI ने कहा…

वाह !
क्या कहने

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कैसा तुमने खेल रचाया, हे परमेश्वर।